राजेंद्र रायपुरी

 ताज, काॅ॑टों का 


 


आया फिर से ताज सिर, 


                   लेकिन नहीं उछाह।


रहा न अब वो दबदबा,


                  बहुत कठिन है राह।


बहुत कठिन है राह,


                 सुशासन पर है भारी।


दो-दो वो तलवार,


                   एक नर दूजी नारी।


बैठे खाए खार, 


               जिन्होंने ताज न पाया।


काॅ॑टों का ही ताज,


                सुशासन हाथों आया।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


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