सुनीता असीम

नाम अमृत का पियो जितना बहुत।


प्रेम की बूंदें मगर चखना बहुत।


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है बड़ी दौलत रखो संतोष सब।


चाहिए कम तो नहीं रखना बहुत।


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राम का ही नाम सब कर लो सुमिर।


सिर्फ थोड़ा ही नहीं जपना बहुत।


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काम काले कर यहाँ छिपते रहे।


हर कदम ख़तरा रहे बचना बहुत।


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रोशनी तुमको खुदा की चाहिए।


तो दुखों की मार को सहना बहुत।


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आ रहा रोना बहुत ये सोचकर।


ज़िन्दगी का नाम है जलना बहुत।


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अब सुनीता की सजा को खत्म कर।


हो गया उसका यहां जलना बहुत।


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सुनीता असीम


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