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डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-18
अंगद सुनि रावन कै बचना।
हँसा होय अति हरषित बदना।।
पकरउ धाइ कपिन्ह अरु भालू।
खावहु तिनहिं न होउ दयालू।।
करउ सकल भुइँ कपिन्ह बिहीना।
जाइ करउ सेना-बल छीना ।।
लाउ पकरि तापसु दोउ भाई।
नहिं त होइ अब मोर हँसाई।।
कह सकोप तब बालि-कुमारा।
सुनहु अधम-खल,बिनू अचारा।।
तुम्ह मतिमंद काल-बस भयऊ।
डींग न हाकहु बहु कछु कहऊ।।
एकर फल तुम्ह पइबो तबहीं।
जबहिं चपेटिहैं बानर तुमहीं।।
तुम्ह कामी-पथभ्रष्ट-निलज्जा।
नर प्रभु कहत न आवै लज्जा।।
जदि आयसु पाऊँ रघुनाथा।
दाँत तोरि फोरहुँ तव माथा।।
राम-बान तरसहिं तव रुधिरा।
यहिं तें तुम्ह छोडहुँ कनबहिरा।।
सुनि अस तब रावन मुस्काना।
कह लबार तुम्ह हो मैं जाना।।
तव पितु बालि कबहुँ नहिं कहऊ।
जस तुम्ह कह तापसु मिलि अजऊ।।
मोंहि कहसु लबार-बातूनी।
पटकहुँ अबहिं पकरि तव चूनी।।
तब प्रभु राम सुमिरि पद धरऊ।
सभा-मध्य अंगद अस कहऊ।।
जदि कोउ टारि सकत पद मोरा।
तजहुँ सीय मम बचन कठोरा।।
छाँड़ि सियहिं यहिं पै मैं फिरहूँ।
तुरत पुरी तिहार मैं तजहूँ ।।
रावन तब तुरतहिं ललकारा।
लइ-लइ नामहिं भटन्ह पुकारा।
मेघनाद समेत बलवाना।
सके न टारि भटहिं बहु नाना।।
दोहा-सके न टारि अंगद-चरन, सुर-रिपु,निसिचर जाति।
नहिं उपारि बिषयी सकहिं,मोह-बिटपु केहु भाँति।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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