डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 दोहे-(घड़ी-माहात्म्य)

घड़ी नियंत्रित ही रखे,दिनचर्या के काम।

कभी नहीं थकती घड़ी,चले बिना विश्राम।।


खाएँ-पीएँ समय से,जगें समय से लोग।

करें कर्म सब समय से,यही रचे संयोग।।


उदय-अस्त रवि-चंद्र का,सब जाने संसार।

अपनी यात्रा से घड़ी,करती समय-प्रसार।।


खेत-खान-खलिहान हों,दफ़्तर छोट-महान।

समय-सूचिका घड़ी यह,सबका रखती ध्यान।।


अतुल यंत्र यह समय का,पल-पल रखे हिसाब।

कहीं नहीं खोजे मिले, ऐसी गणित-किताब।।


यह प्रणम्य-नमनीय है,रखे काल निज हाथ।

मानव को कर सजग यह,देती उसका साथ।।

            © डॉ0 हरि नाथ मिश्र

                9919446372

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