सुनीता असीम

 मुहब्बत हो गई हो तो उसे पाना जरूरी है।

जहां के सामने भी पेश करवाना जरूरी है।

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किसी से भूल हो जाय तो माफ़ी मांग ले फौरन।

छिपाने की नहीं है बात बतलाना जरूरी है।

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चलेगा काल का चक्कर पता तुमको नहीं होगा।

तो पहले कर्म अपने साफ करवाना जरूरी है। 

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किसी मन्दिर से कम होता नहीं घर और आंगन भी।

तो इसमें प्रेम के पत्थर भी लगवाना जरूरी है।

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अगर ठोकर लगे उनको तो बच्चों को नहीं डांटो।

उन्हें बस प्यार देकर खूब सहलाना जरूरी है।

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नहीं भाए सुनीता को नज़ारा दूर से करना।

कि बांके को बुलाकर पास बैठाना जरुरी है।

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सुनीता असीम

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