कालिका प्रसाद सोमवाल

*माँ के लिए चिठ्ठी* ***************** माँ मैं जब तुम्हें चिट्ठी लिखने बैठा, तुम्हारी मुझे बहुत याद आई। ऐसा लगा जैसे तुम मुझे पुकार रही हो, मैं टूटता बिखरता रहा तेरी याद में। कागज पर गिरे हुए आँसुओं की जगह, लिख रहा हूँ मैं छोड़-छोड़ कर। लिखने जब रात को बैठा ही था मैं, माँ यह चिट्ठी जब तेरे नाम से, अल्फाज बहुत सारे आ गये मेरे सामने, जगह भी चाहते थे तेरे नाम में। उलझ सा गया था मैं शब्द जाल में। मैं टूटता बिखरता..... मेरी नजरों के सामने खड़े थे, वो सब कंटीली झाड़ियों के जंगल। तुम जाती थी रोज लकड़ियों के लिये, वही तो था ,पेट की आग का संबल । लहुलुहान हो जाते थे तेरे हाथ , काँटों की चुभन सेआह भी न करती। मैं टूटता बिखरता रहा... तुम्हारी आँखों में आँसू न आते। हमेशा चेहरे पर रहता सन्तोष, बहुत दर्द सहा है जीवन में तुमने, कभी नहीं रहा जीवन में असंतोष। आज खो गया हूँ पुरानी यादों में। मैं टूटता बिखरता.... शुभ वात्सल्य की प्रतिमूर्ति हो माँ तुम, कोई कुछ भी कहे बहुत सह लेती थी। बचपन में बहुत कहानियाँ सुनाई है , नीति की बातें भी कुछ कह देती थी। तुम मिशाल हो स्वाभिमान की, सच में। मैं टूटता बिखरता.... भोर होते ही खेतों में चली जाती थी, साँझ के अन्धेरे में घर आती थी । बहुत संघर्ष किया है तुमने जीवन भर, फिर भी तनिक नहीं घबराती थी। तुम पर बहुत गर्व माँ, नत हूँ चरणों में। मैं टूटता बिखरता..... खोया आज पुरानी यादों में मैं, तुम्हारा त्याग समर्पण ही पाता हूँ। जीवन में आये सुख- दुख उलझन भी, सदा तुमसे ही प्रेरणा पाता हूँ। तुम्हीं ईश साकार हो माँ जीवन में, मैं टूटता बिखरता रहा तेरी याद में। ********************* कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखण्ड

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