डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-52

निज कर गहि गिरि-बिटप बिसाला।

किन्ह प्रहार सभ तुरत कराला ।।

     तिनहिं पकरि रावन पुनि मारहिं।

     पुनि कपि सो निज लातहिं ढारहिं।।

तब नल-नील चढ़े तिसु सीसा।

नखन्ह लिलार खरोंचहिं तीसा।।

      रुधिर देखि रावन बउराया।

      होके कुपित तिनहिं दउराया।।

जब निज कर तें पकरा तिनहीं।

चले छुड़ाइ भागि के सबहीं।।

      तब दसमुख गहि दस धनु-बाना।

      मुर्छित किया कपिन्ह-हनुमाना।।

मुर्छित हनुमत लखि जमवंता।

धावत गए तहाँ बलवंता ।।

       पर्बत-बृच्छ खींचि कपि-भालू।

        मारन लगे दनुज इर्ष्यालू।।

पकरि-पकरि जब पटकेसि रावन।

जामवंत मारे उर धावन ।।

दोहा-जामवंत-पग-घात पा,रावन गिरा अचेत।

        गिरत पकरि कपि बीस कहँ,रह जे परम सचेत।।

        पुनि सारथि इक अपर आ,रथ बिठाइ लंकेस।

         गया ताहि ले लंक मा,रह जहँ लंक-नरेस।।

                      डॉ0हरि नाथ मिश्र

                         9919446372

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