डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *पिता-माहात्म्य*

      *पितृ भाव*

जीवन-दाता जनक है,जैसे ब्रह्मा सृष्टि।

करे पिता-सम्मान जो,उसकी अनुपम दृष्टि।।


पिता देव के तुल्य है,इसका हो सम्मान।

इसका ही अपमान तो,कुल का है अपमान।।


चाल-चलन,शिक्षा-हुनर,सब सुख जो संसार।

चाहे देना हर पिता,सह कर कष्ट अपार ।।


पिता रहे चाहे जहाँ, रखे बराबर ध्यान।

सुख-सुविधा परिवार का,होता स्रोत महान।।


पिता-पुत्र,पुत्री-पिता,जग संबंध अनूप।

राजा दशरथ राम का,जनक-जानकी भूप।।


कभी तिरस्कृत मत करें,वृद्ध पिता को लोग।

बड़े भाग्य जग पितु मिले,बने सुखद संयोग।।


यही सनातन रीति है,पितु है देव समान।

पिता के कंधे पर रहे,कुल-उन्नति-उत्थान।।


पितृ-दिवस का है यही,बस उद्देश्य महान।

हर जन के हिय में बसे,पिता-भाव-सम्मान।।

               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                  9919446372

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