*त्रिपदियाँ*
देव-भूमि पर विपदा आई,
संभव नहीं हानि-भरपाई।
कोप प्रकृति का है यह भाई।।
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पिघल ग्लेशियर हुआ प्रवाहित,
नदियों में घर हुए समाहित ।
हुए सभी जन हतोत्साहित।।
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प्रकृति संतुलन को है कहती,
मनुज-सोच है बहुत फितरती।
भौतिक-सुख उद्देश्य समझती।।
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ऐसी सोच बदलनी होगी,
प्रकृति की रक्षा करनी होगी।
सुख-सुविधा कम रखनी होगी।।
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वन-संरक्षण ही ध्येय रहे,
पर्वत-सरिता से नेह रहे।
तभी सुरक्षित भव-गेह रहे।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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