डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *गीत*(लोक-भाषा में)

डरबै उसरा पे मड़ैया,

चिरई तोहका लइ के ना।

नाहीं करबै हम ढिठैया-

चिरई तोहका लइ के ना।।


गर्मी-सर्दी सब कछु सहबै,

खेती करबै ना।

थोड़-मोड़ हम अन्न उगाइब,

जाइब बजरिया ना।

लेबै तोहका हम मीठैया-

चिरई तोहका लइ के ना-डरबै उसरा पे--------।।


गाय-भैंस हम पालब बबुनी,

उन्हैं चराइब ना।

साँझ-सकारे दुधवा दूहब,

दही जमाइब ना।

सँग-सँग खाइब हमहुँ मलैया-

चिरई तोहका लइ के ना-डरबै उसरा पे-----------।।


करब रोपाई धान क गोरिया,

माह सवनवाँ ना।

गैहा झूमि के तोहउँ कजरी,

पहिरि कँगनवाँ ना।

हमहूँ बनबै संग कन्हैया-

चिरई तोहका लइ के ना-डरबै उसरा पे-------------।।


फागुन मा जब आई होली,

होली खेलब लइ रँगवा।

तीज-दिवारी अउर दसहरा,

सभें मनाइब सँगवा।

नाचब सँग मा ताता-थैया-

चिरई तोहका लइ के ना-डरबै उसरा पे--------------।।


सुख कै जिनगी जीयल जाई,

छोड़ि सहरिया ना।

रूखा-सूखा खाइ के सजनी,

होई बसरिया ना।

ई जिनगी भूल-भुलैया-

चिरई तोहका लइ के ना-डरबै उसरा पे------------।।

            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                 9919446372

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