डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-5

सानुज धरे चरन गुरु रामा।

मुनि नायक बसिष्ठ अरु बामा।।

     कहहु राम आपनु कुसलाई।

      पूछे गुरु तब कह रघुराई।।

गुरुहिं कृपा रावन-बध कीन्हा।

लंका-राज बिभीषन दीन्हा।।

    जाकर गुरु-पद महँ बिस्वासा।

     पूरन होहि तासु अभिलासा।।

भरतै धाइ राम-पद धरेऊ।

जिनहिं देव-सिव-ब्रह्मा परेऊ।।

     प्रभू-चरन गहि भरत भुवालू।

     विह्वल भुइँ पे परे निढालू।।

बड़े जतन प्रभु तिनहिं उठाए।

पुलकित तन प्रभु गरे लगाए।।

छंद-अइसन मिलन प्रभु-भरत कै,

              मानो मिलन रस लागहीं।

       अपनाइ तनु जिमि रस सिंगारहिं,

              प्रेम-रस सँग पागहीं ।।

सोरठा-जब पूछे श्रीराम, रहे बरस दस चारि कस।

           रटतै-रटतै राम,कहे भरत सुनु भ्रात तब।।

                           डॉ0हरि नाथ मिश्र

                                9919446372

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