*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-5
सानुज धरे चरन गुरु रामा।
मुनि नायक बसिष्ठ अरु बामा।।
कहहु राम आपनु कुसलाई।
पूछे गुरु तब कह रघुराई।।
गुरुहिं कृपा रावन-बध कीन्हा।
लंका-राज बिभीषन दीन्हा।।
जाकर गुरु-पद महँ बिस्वासा।
पूरन होहि तासु अभिलासा।।
भरतै धाइ राम-पद धरेऊ।
जिनहिं देव-सिव-ब्रह्मा परेऊ।।
प्रभू-चरन गहि भरत भुवालू।
विह्वल भुइँ पे परे निढालू।।
बड़े जतन प्रभु तिनहिं उठाए।
पुलकित तन प्रभु गरे लगाए।।
छंद-अइसन मिलन प्रभु-भरत कै,
मानो मिलन रस लागहीं।
अपनाइ तनु जिमि रस सिंगारहिं,
प्रेम-रस सँग पागहीं ।।
सोरठा-जब पूछे श्रीराम, रहे बरस दस चारि कस।
रटतै-रटतै राम,कहे भरत सुनु भ्रात तब।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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