विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल --


यूँ अपनी निगाहों में ज़िंदा  वो उजाले हैं

अहसास के जुगनू को हम आज भी पाले हैं


कुछ अपनी ख़ता ठहरी  कुछ दिल का तकाज़ा भी 

कुछ उनकी अदा के भी  अंदाज़ निराले हैं


कुछ हौसला देता है वो शख़्स इशारों से 

यूँ जान हथेली पर हम रखते जियाले हैं


यह कैसा गुमाँ होता  इस राहे मुहब्बत में

उनकी ही ज़ियाओं के हर सिम्त में हाले हैं


हर शाम जलाते हैं हम ख़ून चराग़ों में

तब जाके कहीं उनकी दुनिया में  उजाले हैं


इन्आम यही हमने पाया है मुहब्बत में 

होंठो पे हँसी नग़मे  तो पाँव में छाले हैं


साग़र न बदल जाये इस.दिल का इरादा भी 

हम उनकी विरासत को अब तक तो संभाले हैं 


🖋विनय साग़र जायसवाल

21/1/20 20

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