मधु शंखधर स्वतंत्र

 गज़ल

122 122 122 122

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गुमां आप दिल में जो पाले हुए हैं।

यूँ हीं अंजुमन से निकाले हुए हैं।।


बदी आज भी दरबदर है भटकती,

 वफा़ की जुबा़ँ पर भी ताले हुए हैं।।


बसर करना मुश्किल रहा साथ जिसके,

खुदी आज उसके हवाले हुए हैं।।


अँधेरों में घिर के बहुत की मशक्कत,

कहीं जाके तब यह उजाले हुए हैं।।


तुम्हें ढूँढ़ते हर नगर हर गली में,

चलें कैसे पैरों में छाले हुए हैं।।


जिन्हें कर पराया किया दूर खुद से,

वही आज हमको सम्हाले हुए हैं।।


ज़माना हमें *मधु* करे याद कैसे

यहाँ हीर राँझा निराले हुए हैं।।

*मधु शंखधर स्वतंत्र*

*प्रयागराज*

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