विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल

1

हल मसाइल का अगरचे आज तक निकला नहीं 

क्यों निज़ाम-ए-सलतनत को आपने बदला नहीं

2.

उनके होंटो पर था कुछ आँखों में था कुछ और ही 

इसलिए उस  गुफ्तगू से दिल ज़रा बहला नहीं 

3.

उनके उस पुरनूर चेहरे में झलकता दर्द था

यूँ भी उनके दर्मियाँ यह दिल मेरा मचला नहीं 

4.

चाँद के नज़दीक जाकर यूँ पलट आया  हूँ मैं

उनके जैसा ख़ूबसूरत चाँद भी निकला नहीं 

5.

जब तवज्जो ही नहीं है इस तरफ़ सरकार की 

दिल की इस बारादरी का हाल भी सँभला नहीं

6.

बेवफ़ाई के तेरे दामन पे गहरे दाग़ हैं

धोते धोते थक गया तू पर हुआ उजला नहीं

7.

इस सियासत में हैं *साग़र* हर तरफ़ रंगीनियाँ

कौन है वो शख़्स जो आकर यहाँ फिसला नहीं


🖋️विनय साग़र जायसवाल

6/2/2021

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