दिनांकः ०९.०२.२०२१
दिवसः मंगलवार
छन्दः मात्रिक
विधाः दोहा
शीर्षकः बढ़े मान चहुँदिक प्रगति
गौरव है मुझको वतन , शत शत उसे प्रणाम।
बढ़े मान चहुँदिक प्रगति , जन धन यश सुखधाम।।
हो शिक्षा सब जनसलभ, स्वस्थ रहे जन गात्र।
जाति धर्म भाषा बिना , मानक बने सुपात्र।।
मर्यादित आचार हो , नित प्रेरक वात्सल्य।
मौलिकता पुरुषार्थ हो , कर्मशील साफल्य।।
साधु समागम कठिन जग, सद्गुरु दुर्लभ लोक।
मातु पिता भू गगन सम , मिले ज्ञान आलोक।।
राष्ट्रधर्म कर्तव्य हो , लोकतंत्र विश्वास।
परमारथ सेवा वतन , नीति प्रीति आभास।।
हरित भरित सुष्मित प्रकृति , ऊर्वर भू संसार।
तजो स्वार्थ संभलो मनुज , प्रकृति बने उपहार।।
यह ग्लेशियर चेतावनी , भूकम्पन तूफ़ान।
जलप्लावन ज्वालामुखी , रोक प्रकृति अपमान।।
जो कुछ जीवन में मिला , समझ ईश वरदान।
पाओ सुख संतोष को , खुशी प्रीति यश मान।।
सब प्राणी समतुल्य जग , सबका जग अवदान।
पंच भूत निर्मित जगत , जीओ बन इन्सान।।
जन मन मंगल भाव मन ,जन विकास अवदान।
जीवन अर्पित देश को , मातृशक्ति सम्मान।।
छवि निकुंज मन माधवी , खिले कुसुम मकरन्द।
फैले खुशियाँ अरुणिमा,धवल कीर्ति निशिचन्द।।
कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली
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