शोख हवा में आंचल उनके उड़ते हैं।
आशिक दिल के पुरजे ऊँचे उड़ते हैं।
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एक हसीं की मस्त नज़र से घायल हो।
मजनू सारे चलते चलते उड़ते है
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तप्त मरू सा जलता है तन उनका तब।
दिल के अरमाँ भाप सरीखे उड़ते हैं।
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कुछ पक्के कुछ कच्चे हैं रह जाते वे।
जो भी सपने डरते डरते उड़ते हैं।
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और हुआ जाता ख़ारा सागर है तब ।
जब आंसू के अंबर उसपे उड़ते हैं ।
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सुनीता असीम
२४/४/२०२१
कोरोना की जात
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जात पूछकर कोरोना की लतिया दो अब इसको।
कर बचाव सुरक्षा अपनी औकात बतला दो अब इसको।
रहने को घर नहीं मिलेगा तब तड़पेगा-
जिन्दगी की कीमत क्या समझा दो अब इसको।
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सुनीता असीम
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