सुनीता असीम

शोख हवा में आंचल उनके उड़ते हैं।
आशिक दिल के पुरजे ऊँचे उड़ते हैं।
***
एक हसीं की मस्त नज़र से घायल हो।
मजनू सारे चलते चलते   उड़ते है
***
तप्त मरू सा जलता है तन उनका तब।
दिल के अरमाँ भाप सरीखे उड़ते हैं।
***
कुछ पक्के कुछ कच्चे हैं रह जाते वे।
जो भी सपने डरते डरते उड़ते हैं।
***
और हुआ जाता ख़ारा सागर है तब ।
जब आंसू के अंबर उसपे उड़ते हैं ।
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सुनीता असीम
२४/४/२०२१

कोरोना की जात
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जात पूछकर कोरोना की लतिया दो अब इसको।
कर बचाव सुरक्षा अपनी औकात बतला दो अब इसको।
रहने को घर नहीं मिलेगा तब तड़पेगा-
जिन्दगी की कीमत क्या समझा दो अब इसको।
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सुनीता असीम

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