मधु शंखधर स्वतंत्र

सुप्रभात.... राम राम सभी को.....🌷🌷🙏🏼
*भोर का नमन*
हे प्रभु ऐसी भोर करो अब, 
मन के सारे दुख मिट जाएँ।
सूर्य क्षितिन्ज्या की लाली में,
तन मन दोनों ही मिल जाएँ।।

नहीं रुदन की आवाजें हों,
नहीं बिलखता बचपन हो अब।
अन्तर्मन की त्रास मिटा दो,
दूरी सारी दूर करो अब।
हाथ - हाथ में हो अपनों के,
सब मिल बैठे नाचें गाएँ।
हे प्रभु ऐसी भोर करो अब,
मन के सारे................।।

महाकाल का नृत्य थमे अब,
पहले सा हँसता बचपन हो।
उजड़े न घर बार किसी का,
पुष्पों से खिलता उपवन हो।
धरती पर छाए हरियाली,
ऋतुओं संग त्यौहार मनाएँ
हे प्रभु ऐसी भोर करो अब,
मन के सारे.................।।

कटुता कपट कुसंगत भागे,
पर उपकारी भाव बसे अब।
समता, साहस , सरस भावना,
बस जाए जन जन के मन अब।
इर्ष्या द्वेष भुलाकर सारे,
शोभा मधु जग सहज बढ़ाएँ।
हे प्रभु ऐसी भोर करो अब,
मन के सारे.................।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र*
*प्रयागराज*

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