तेरहवाँ-6
*तेरहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-6
बरस-काल एक जब बीता।
ब्रह्मा आए ब्रजहिं अभीता।।
लखतै सभ गोपिन्ह अरु बछरू।
खात-पियत रह उछरू-उछरू।।
भए अचम्भित भरमि अपारा।
लखहिं सबहिं वै बरम्बारा।।
किसुन कै माया समुझि न पावैं।
पुनि-पुनि निज माया सुधि लावैं।।
असली-नकली-भेद न समुझहिं।
निज करनी सुधि कइ-कइ सकुचहिं।।
जदपि अजन्मा ब्रह्मा आहीं।
किसुनहिं माया महँ भरमाहीं।।
भरी निसा-तम कुहरा नाईं।
जोति जुगुनु नहिं दिवा लखाईं।।
वैसै छुद्र पुरुष कै माया।
कबहुँ न महापुरुष भरमाया।।
तेहि अवसर तब ब्रह्मा लखऊ।
बछरू-गोप कृष्न-छबि धरऊ।।
सबहिं के सबहिं पितम्बरधारी।
सजलइ जलद स्याम बनवारी।।
चक्रइ-संख,गदा अरु पद्मा।
होइ चतुर्भुज बिधिहिं सुधर्मा।।
सिर पै मुकुट,कान महँ कुंडल।
पहिनि हार बनमाला भल-भल।।
बछस्थल पै रेखा सुबरन।
बाजूबंद बाहँ अरु कंगन।।
चरन कड़ा,नूपुर बड़ सोहै।
कमर-करधनी मुनरी मोहै।।
नख-सिख कोमल अंगहिं सबहीं।
तुलसी माला धारन रहहीं।।
चितवन तिनहिं नैन रतनारे।
मधु मुस्कान अधर दुइ धारे।।
दोहा-लखि के ब्रह्मा दूसरइ,अचरज ब्रह्मा होय।
नाचत-गावत अपर जे,पूजहिं देवहिं सोय।।
अणिमा-महिमा तें घिरे,बिद्या-माया-सिद्ध।
महा तत्व चौबीस लइ, ब्रह्मा दूजा बिद्ध।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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