नूतन लाल साहू

शराबी के चार दिन

शहर हो या गांव हो
बन गया है अमर कहानी
शराबी के चार दिन का
होता है जिंदगी
अच्छा भला चंगा
जाता है भट्ठी
क्षमता से अधिक,शराब पीकर
लड़खड़ाते गिरते
कुत्ता जैसा भौंकता
आता है घर
कभी कभी तो रास्ते में ही
टकरा जाता है गाड़ी
तोड़ देता है दम
शहर हो या गांव हो
बन गया है अमर कहानी
शराबी के चार दिन का
होता है जिंदगी
कभी कभी तो,अनेक शराबी
सुर दुर्लभ मानव तन पाकर भी
करता है चोरी डकैती
पकड़े जाने पर
खाता है मार
पर,घर में दिखाता है अपनी शान
और हर दिन करता है मांग
मुर्गा मटन और
न जाने क्या क्या
जैसे बन गया है चंडाल
और करता है ऐसी ऐसी हरकत
जैसे नही देखना है
अपना और किसी के कल को
शहर हो या गांव हो
बन गया है अमर कहानी
शराबी के चार दिन का
होता है जिंदगी

नूतन लाल साहू

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