ग़ज़ल--
221-2122-1221-212
वो मुझको चाहता है मुझे यह गुमान था
मतलब परस्त दौर में जो मेहरबान था
जब उसने मेरे फूल को मसला ज़मीन पर
उस वक़्त उस के सामने मैं बेज़ुबान था
होती भी कैसे उनसे मुलाकात बारबार
मेरी पहुँच से दूर जो उनका मकान था
दो पल में मेरे दिल की हवेली ही जीत ली
इतना ख़ुलूसमंद मेरा मेज़बान था
महबूब के जो साथ निकलते थे सैर को
सहरा भी उन पलों में हमें गुलसितान था
उस बेवफ़ा का नाम न बदनाम हो कहीं
यह मेरी ज़िन्दगी का बड़ा इम्तिहान था
अपनी सफाई पेश मैं करता भी किस तरह
उसका हिमायती जो मेरा खानदान था
मसरूफ़ हर बशर है यहाँ ख़ुदनुमाई में
इससे तो पहले ऐसा नहीं यह जहान था
*साग़र* वो आज मुझसे मिला ग़ैर की तरह
कल तक जो कहता रहता मुझे मेरी जान था
🖋️विनय साग़र जायसवाल, बरेली
24/6/2021
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