ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम

नमन मंच

एक कविता

कितना अच्छा होता 
जो मानवता भी झरना सा बहती।
 करने को सबको खुशहाल
सारी पृथ्वी पर जल सा बहती।

आज देखो समाज में
मानवता बंजर सा बन के ठहरी।
चालाकी और धूर्तता,
बनी आज देखो कैसी प्रहरी।

अब कुछ परिवर्तन
समाज में लाना ही होगा।
मानवता हित
इंसानियत का दीप जलाना होगा।

फैला दो भाव
मानवता का  इस जगत में सभी,
सच मानो साथी
जग में नहीं रुकेगा कोई संकट   कभी।

ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम

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