रामबाबू शर्मा राजस्थानी

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        *चित्राधारित लेखन*
           *विधा- कविता*
        
         देख चित्र मातृशक्ति का,
        अभिनंदन करता हूं।
        उसकी पालन शक्ति को,
        वंदन मैं करता हूं।।

        अनपढ़ सी हैं पर वो,
        शिक्षा का रूप जानती।
        इसलिए तो इसे वो,
        अपना धर्म मानती।।

        बेटी को तैयार कर,
        विश्वास जगाना है।
        मन में कुंठा न आये,
        उसे बतलाना है।

       सड़क पार रखा फर्मा,
       घर सा नजर आया।
       ताजमहल सा बनकर,
       मन ही मन शर्माया।।

       गोल गोल बहुत सुंदर,
       सर्दी गर्मी न बरसात।
       रस्सी पर सजी जैसे, 
       कपड़ों की बारात।।

       पास और एक घेरा,
       जिसमें झूले लाल।
       हे देवी तुमने तो,
       कर दिया है कमाल।।

     रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)

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