डॉ. कवि कुमार निर्मल

आज का कविमन जाग उठा है
शंखनाद् कर आगे चल पड़ा है

कंटकाकीर्ण पथ है पर  परवाह नहीं है
जन जागरण हुआ मशाल जल उठी है

क्षल प्रपंच की चहुंओर व्याप्त है छाया
तमसा से कुपित हुआ मन और काया

विषाणुओं का प्रचण्ड विनाशकारी ताण्डव की  छाया 
कवि हुंकृति कर सात्विकता का ध्वज आज फहराया

डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, बिहार

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