निशा अतुल्य

बदरिया घिर आई

बदरिया घिर आई
सावन की ऋतु छाई
काले काले मेघ उठे
बूंदे बरसाए हैं ।

झूले अम्बवा पे डाले
ऊंची पींग तू बढाले 
दामिनी चमक रही
मन भीग जाए हैं ।

कजरी मैं गाऊँ कैसे
दिन आये है सुहाने 
मन लगे नहीं यहाँ 
पीया याद आए है ।

बाबुल का देश छूटा
पीया का संग अनूठा
दिल कहीं लगे नहीं 
मन भरमाए है ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

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