*।।ग़ज़ल।। संख्या 112।।*
*।।काफ़िया।। आन ।।*
*।।रदीफ़।। बन कर देखो।।*
1
तुम गैरों पर भी मेहरबान बन कर देखो।
तुम जरा सही इंसान बन कर देखो।।
2
बच्चों के साथ बच्चे बन कर खेलो।
तुम भी जरा मासूम नादान बनकर देखो।।
3
मत भागो हमेशा झूठी शोहरत के पीछे।
तुम औरों के भी कद्रदान बन कर देखो।।
4
जमीं पर ही रह कर जरा सोच रखो ऊँची।
तुम जरा ऊपर आसमान बन कर देखो।।
5
जड़ से उखाड़ फेंकें काँटों के पेड़ को।
तुम जरा वह तूफान बन कर देखो।।
6
जज्बा और जनून हो खूब अंदर तेरे।
तुम वैसे इक़ रहमान बन कर देखो।।
7
अपने ही सुख में मत मशगूल रहो हमेशा।
किसीऔर के गम में परेशान बनकर देखो।।
8
मसीहा सी सूरत संबको नज़र आये तुममें।
तुम ऐसी ही सबकी शान बन कर देखो।।
9
*हंस* अपने अंदर भी झांको टटोलो खूब।
तुम खुदअंदर दुनिया जहान बन कर देखो।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
8218685464
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें