हर एक अदा को मेरी कोई राज समझ लेते हैं,
बेवजह नाम मेरा उसके संग यूँ ही जोड़ देते हैं।
कसूर है नही किसी का सब वक्त-ए-गुनाह है,
हम साँस भी लेते हैं वो आहों का नाम देते हैं।
इन आँखों के तरन्नुम में मेरी सादगी छिपी,
जाने क्यूँ इनको सभी इश्क़ ए सलाम कहते हैं।
चहरे को देखते न दिल का आइना देखें,
हँसीं रुखसार को उसी की मुहब्बत करार देते हैं।
खुशियाँ तमाम मिल जाये मेरे रकीब को,
ये सोच कर हम अपने गम पे गुमान करते हैं।
जिसको नहीं परवाह रश्म-ए-वफा की हो,
भूले से भी नहीं हम अब उसका लेते हैं।
*स्वरचित-*
*डाॅ०निधि मिश्रा ,*
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