नूतन लाल साहू

मैं जल हूं

मेरे स्वर में कल कल है
एक कल में इतिहास का बोध
दूसरे कल में
भविष्य का शोध है
सतत प्रवाहमान
मेरी है पहचान
मैं जल हूं
गति में चंचल
पर भावना में अचल
प्यास बुझाने के पहले
नही पूछता
दोस्त हो या दुश्मन
हर कोई प्यार से नहाएं
और जी भर के पीता है
मैं जल हूं
सूर्य भगवान के लिए
मैं अर्ध्य बन जाता हूं और
दुखी मनुष्यो के आंखो में
आंसू बनकर
मैं ही तो रोता हूं
गर्मियों में आनंदमयी
फुहार बन जाता हूं
मैं जल हूं
मेरी बूंद बूंद अक्षर है
गति कभी,मंद ना हुई
सभ्यताएं मुझमें समाती है
घुल मिल जाती है
कभी कभी धूप में
गुनगुना होकर
गुनगुनाता हूं
सीने में रहूं या पसीने में
शीतलता का गीत गाता हूं
मैं जल हूं

नूतन लाल साहू

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