मधु शंखधर स्वतंत्र

बरसात
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मौसम है बरसात का, बूँदे हैं चितचोर।
काले बादल आ गए, घिरी घटा घनघोर।
छम छम करती बूँद की, मनमोहक आवाज,
आकर्षित करी सदा , सुखद लगे यह भोर।।

यादों में बरसात वो , जिसमें साथी साथ।
बूँद बूँद से खेलते, हाथ लिए सब हाथ।
कागज की नैया बना, बहा दिए जलधार,
डूबे जब नैया वहाँ , धैर्य बसाते नाथ।

पल्लव की शोभा बढ़ी, आह्लादित बरसात।
पक्षी कलरव कर रहे , इंद्रधनुष सौगात।
मधुर गीत संगीत से, झूम रहे सब लोग,
लोकगीत सावन कहे, सुगम सुखद हर बात।।

हे ईश्वर ऐसी करो, नेह सुधा बरसात।
द्वेष मिटाए रवि नवल , सुंदर सुखद प्रभात।
सृजन कर्म की भूमि पर,सुरभित होते पुष्प,
रंग बिरंगे भाव में, भक्ति मुदित *मधु* बात।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️

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