विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

नसीब का ही है खेल सारा किसी की कोई ख़ता नहीं है
तमाम हस्ती लुटाई जिस पर मिली उसी से वफ़ा नहीं है
हुस्ने-मतला-----
हमारे ग़म की क्या ऐ तबीबों जहान भर में दवा नहीं है 
हज़़ार कोशिश के बाद भी जो मिली अभी तक शिफ़ा नहीं है 

है लाख माना वो दूर हमसे मिले भी मुद्दत हुई है उससे
मगर वो दिल की नज़र से मेरी किसी भी लम्हा जुदा नहीं है

हमारे क़िस्से हैं लब पे उसके सुनाता रहता है हर किसी को 
बशर बताते हैं फोन करके किसी तरह बेवफ़ा नहीं है 

करम की नज़रें ख़ुदाया रखना रहे सलामत वो हर तरह से 
हमारी नज़रों में उससे बढ़कर कोई हमारा सगा नहीं है 

हजारों सदमे लिपट गये हैं रह-ऐ-वफ़ा में क़दम ही रखते
फ़रेबी दिल ने कहा बराबर ये सौदा फिर भी बुरा नहीं है

उलझती जाती है दिन ब दिन ही हयात अपनी बताओ *साग़र*
हमारी मुश्किल के रास्तों में कोई भी मुश्किलकुशा नहीं है 

🖋️विनय साग़र जायसवाल, बरेली

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