ग़ज़ल---
हमारे दिल में जो चाहत है हम ही जाने हैं
कि तुमसे जितनी मुहब्बत है हम ही जाने हैं
तेरे बग़ैर जो आलम था वो बतायें क्या
हमें जो तेरी ज़रूरत है हम ही जाने हैं
बिना तुम्हारे हमारा वजूद क्या होता
तुम्हारी जितनी इनायत है हम ही जाने हैं
किसी भी और का खाना हमें नहीं भाता
तेरे पके में जो लज़्ज़त है हम ही जाने हैं
हरेक रिश्ता निभाती है तू सलीक़े से
जो तेरे होने से इज़्ज़त है हम ही जाने हैं
गुरूर टूट के बिखरा है उनके जाते ही
जो दिल में आज मलामत है हम ही जाने हैं
वो घर को रखते थे *साग़र* बड़े करीने से
बग़ैर उनके जो दिक्क़त है हम ही जाने हैं
🖋️विनय साग़र जायसवाल, बरेली
22/6/2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें