नंदिनी लहेजा

विषय:-आँसू 

मन के अनेक भाव मानव के,
जो मुख से कहे न जाए
छलके बनकर नीर अखियन से
आँसू यही कहलाये
जब प्रथम बार माँ अपने शिशु को गोद में अपनी उठाए
या फिर कोई अपना हमसे बिछड़ इस जग से चला जाए
चाहे मिलन हो या हो विछोड़ा  ये आँसू  छलक ही जाएं
भक्ति में लीन कोई प्रभु का प्यारा अपने ईश का ध्यान करे
या बिछड़े अपने प्रीतम को बन राधिका कोई याद करे
प्रेम में डूबा  अंतरमन  जब यादों में खो जाए
ये आँसू  छलक ही जाएं
जब आगे बढ़ते देख  पुत्र को अपने माँ का मन हर्षित हो जाए
या विदा करते बिटिया रानी हिर्दय पिता का भर सा जाए
चाहे सुख हो या कोई दुख ये आँसू  छलक ही जाएं

नंदिनी लहेजा
रायपुर छत्तीसगढ़
स्वरचित मौलिक

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...