बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक पूर्व प्रवक्ता B.B.L.C.INTER COLLEGE KHAMRIA PNDIT

श्री राम चरित मानस अनुसार कलयुग के प्राणियों का वर्णन


जे जनमे कलिकाल कराला।
करतब बायस बेष मराला।।
चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े।
कपट कलेवर कलिमल भांडे।।
बंचक भगत कहाइ राम के।
किंकर कंचन कोह काम के।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  जिनका जन्म कठिन कलियुग में हुआ है, जिनकी करनी कौवे के समान है और वेश हँस का है, जो वेदमार्ग को छोड़कर कुमार्ग पर चलते हैं, जिनका कपट का ही शरीर है और कलियुग के पापों के पात्र हैं।जो प्रभुश्री रामजी के भक्त कहलाकर लोगों को ठगते हैं और जो लोभ( स्वर्ण अर्थात धन ),क्रोध और काम के दास हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
   कलियुग को अन्य तीनों युगों से अधिक कठिन व कराल कहा गया है।गो0जी ने उत्तरकाण्ड में कलियुग के अवगुणों का विस्तृत वर्णन किया है।दोहा सँ0 97 से 101 तक।यथा,,
कलि केवल मल मूल मलीना।
पाप पयोनिधि जन मन मीना।।
सो कलिकाल कठिन उरगारी।
पाप परायन सब नर नारी।।
बरन धर्म नहिं आश्रम चारी।
श्रुति बिरोध रत सब नर नारी।।
द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन।
कोउ नहिं मान निगम अनुसासन।।
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी।
कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी।।
जो कह झूँठ मसखरी जाना।
कलिजुग सोइ गुनवन्त बखाना।।
 करतब बायस बेष मराला कहने का तात्पर्य यह है कि वेशभूषा तो हँस अर्थात सज्जनों की है और कार्य कौवे अर्थात दुर्जनों के हैं।यही कपट है और चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े यही कलिमल है।वेशभूषा से वंचक अर्थात ठगों को भी समाज में सम्मान मिल जाता है लेकिन अन्त में भेद खुलने पर उनका पतन ही होता है।यथा,,,
लखि सुबेष जग बंचक जेऊ।
बेष प्रताप पूजिहहिं तेऊ।।
उघरहिं अंत न होइ निबाहू।
कालनेमि जिमि रावन राहू।।
  वेशभूषा से तो वे रामभक्त बनने का स्वाँग करते हैं परन्तु वास्तव में वे लोभ,काम व क्रोध के दास हैं।काम क्रोध लोभ व मोह  का दास होना ही कलियुग के प्रपंच है।कवितावली में गो0जी कहते हैं---
साँची कहौं कलिकाल कराल मैं ढारो बिगारो तिहारो कहा है।
काम को कोह को लोभ को मोह को मोहि सों आनि प्रपंच रहा है।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


अतिवीर जैन पराग, मेरठ

महाशिवरात्रि :-


ओम जय भोलेभंडारी,
महिमा तुम्हरी अपरम्पार,
सुर असुर,देव नर किन्नर,
सब गावे महिमा न्यारी.


शिव,शंकर, भोले,त्रिपुरारी,
भस्म लपेट,बाघम्बर पहना,
गौरी को ब्याहने चले,
कर बसहा पर सवारी.
ओम जय भोले भंडारी.


उमा का तप आज रंग लाया,
अघोरी आज ब्याहने आया,
भूत पिशाचों की बारात है लाया,
महाशिवरात्रि पर्व मनाया.
ओम जय भोले भंडारी.


पार्वती संग जब आप विराजौ,
छवि लगती अति प्यारी,
गणेश कार्तिकेय मध्य बिराजे,
आप सब जग के पालनहारी.
ओम जय भोले भंडारी.


स्वरचित,अतिवीर जैन पराग, मेरठ


सुरेन्द्र मिश्र

महाशिवरात्रि के पावन दिवस पर भगवान शिव के चरणों में,भजन के रूप में श्रद्धा सुमन।
 प्रातकाल ईश्वर सुमिरन कर धरती मां को करो प्रणाम।
प्रारम्भ करो अपनी दिनचर्या लेकर पावन शिव का नाम।
          जय शिवशंकर जय शिवशंकर।
आशुतोष शिव मूर्ति बिठा ले प्राणी अपने मन के अंदर
          जय शिवशंकर जय शिवशंकर।
भोले शंकर हे चन्द्रभाल है नील कंठ में ब्याल माल।
हर हर शम्भू महादेव देव लोक मानस मराल
आक पुष्प अर्पित चरणों में हे परमेश्वर हे जगदीश्वर।
          जय शिवशंकर जय शिवशंकर
मल्लिकार्जुन हे वैद्यनाथ श्री सोमनाथ हे विश्वनाथ।
भीमशंकर जय रामेश्वर महाकालेश्वर केदारनाथ
ओंकारेश्वर त्रयम्बकेश्वर जय घृष्णेश्वर जय नागेश्वर।
        जय शिवशंकर जय शिवशंकर।
द्वादश ज्योतिर्लिंग तुम्हारे नष्ट करें पातक अघ सारे।
आशुतोष प्रभु औघड़ दानी तुम को सारे भक्त पुकारे।
जय बम-भोले जय त्रिपुरारी जय त्रिनयन सृष्टि प्रलयंकर
          जय शिवशंकर जय शिवशंकर।
नाम सदाशिव अतिशय पावन मुक्ति प्रदायक पाप नसावन।
हे गौरी पति हे त्रिशूल पति भोलेनाथ भक्त मनभावन।
सुर नर असुर यक्ष गंधर्वा विल्व पत्र पूजित गंगाधर।
         जय शिवशंकर जय शिवशंकर।
               सुरेन्द्र मिश्र


चन्द्र पाल सिंह " चन्द्र " राय बरेली उ० प्र०

त्रिभंगी छंद 



जय जय शिव शंकर,जय प्रलयंकर, जय अभ्यंकर, नग वासी !
हे अज विश्वेश्वर, जगत महेश्वर, हे कालेश्वर, सुख राशी !!
हे त्रिगुणातीता, परम पुनीता ,करहु अभीता,भय हारी !
धरि शीश सुधाकर,हे करुणाकर, भस्म रमाकर, सुख कारी !!


कर भस्म अनंगा ,सिर धरि गंगा,भंग तरंगा, त्रिपुरारी !
गौरी पति शंकर ,प्रभु प्रलयंकार, रूप भयंकर, शिव धारी !!
नागन उर माला ,कटि मृगछाला,दीन दयाला, वृषभ चढ़े !
नाचहिं वैताला, होहिं निहाला ,भूत कराला ,चलत बढ़े !!


चन्द्र पाल सिंह " चन्द्र "
राय बरेली उ० प्र०


डा० भारती वर्मा बौड़ाई

वेब पोर्टल में प्रकाशनार्थ 


डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून, उत्तराखंड 
9759252537



#महाशिवरात्रि#


शिव को
अपनाना हो 
जीवन में अपने 
तो सर्वप्रथम उनकी 
सरलता अपनाइए 
जैसे हैं 
जीवन में 
वैसे ही बन कर 
हर क्षेत्र में अपना 
कर्तव्य निभाइए 
आडंबर से
रहें दूर सदा 
सबको अपना मान
उन्हें ही बस अपना 
अलंकार बनाइए 
सबके
हृदय में बस 
सुख सारे बाँट कर 
दुख समेट विषपायी
नीलकंठ बन जाइए 
अहंकार 
सारा छोड़ कर 
मन के द्वंद्व भूल कर 
सत्य के प्रकाश में 
दमकते जाइए 
उपवास हो 
मनोयोग से 
सत्य भक्ति भाव से 
मन मंदिर में आज 
शिवरात्रि मनाइए।
————————
 डा० भारती वर्मा बौड़ाई


नवीन कुमार भट्ट नीर ग्राम मझगवाँ पो.सरसवाही जिला उमरिया मध्यप्रदेश

शिव


बैठे शिव कैलाश पे,नीर लगाकर ध्यान।
नंदी भी बैठे यहाँ, बाँट रहे है ज्ञान।।


शिव का सुमिरन कीजिए,शिव जी बडे महान।
इनके कारण ही टिक,सारा नीर जहान।।


भोले लगते है सदा,रखिये मन विश्वास।
शिव करते हर कामना,वाणी रखें मिठास।।


शिव बैठे कैलाश पे,नीर लगाये ध्यान।
इनकी लीला है अजब,नीर रहे अनजान।।


हर पत्तों पे शिव बसे,महिमा बड़ी अपार।
मन में शिव आराधना,लाये सदा बहार।।


शिव को पूँजे राम है,लेकर मानव रूप।
शिव को सदा मनाईये,इनकी कृपा अनूप।।


भाँग धतूरा चरस सम,गाँजा दारू संग।
अर्पण शिव को कीजिए, पुष्पित रंग बिरंग।।


नीलकण्ठ शिवरूप हैं,शिव ही भोलेनाथ।
जो जैसी करनी करे,वैसे देते साथ।।


साँप विराजे कंठ में,बिच्छू कुंडल कान।
भूत प्रेत संग दोस्ती,करते विष का पान।।


सच्चे दिल से कीजिए,शिव मंत्र का जाप।
हर राहों पे जीत हो,जग में बढ़िये आप।।


नवीन कुमार भट्ट नीर
ग्राम मझगवाँ पो.सरसवाही जिला उमरिया मध्यप्रदेश


डॉ शेषधर त्रिपाठी'शेष'                    पुणे, महाराष्ट्र

सभी कविवरों को महाशिवरात्रि की असीम शुभकाना


       भोला भंडारी
      --------------------
मेरा भोला है भंडारी,
जिसकी दुनिया न्यारी-न्यारी
होके नंदी पर सवार
करे भक्तों की रखवारी।मेरा भोला है भंडारी।।


माथे पे चंदा सोहे,
भक्तों को खूब मोहे।
कंठ में भुजंग धारे
नीला-नीला कंठ मोहे
सिर पर अमृत गंगा वारी।
मेरा भोला है भंडारी।
जिसकी दुनिया न्यारी-न्यारी
होकर---------------------
------------------रखवारी।


आया सावन का महीना
झूमे शंकर का दीवाना
पूजे सारे देवी देवा शम्भूनाथ को
भोलेनाथ को।
डम-डम डमरु हाथ बिराजे
संग में पार्वती हैं प्यारी।मेरा भोला है भंडारी।
जिसकी दुनिया न्यारी-न्यारी।
होकर ---------------------
--------------------रखवारी।।


सारे जग का है वो देवा,
करते निशदिन उसकी सेवा।
करते नैय्या सबकी पार,
शम्भूनाथ हो,भोलेनाथ हो।
वो तो भस्म, त्रिनेत्र हैं धारी
जिसकी सुंदर छवि है न्यारी
मेरा भोला है भंडारी,
जिसकी दुनिया न्यारी-न्यारी।
होकर -----------------------
--------------------रखवारी।
मेरा भोला है भंडारी-------।।
         ©डॉ शेषधर त्रिपाठी'शेष'
                   पुणे, महाराष्ट्र


अभिलाषा देशपांडे लघुकथा

घाव 
    एकबार  मथुरा में  दो अजनबी एक दुसरे से फेसबुकपर मिले और देखते देखते जान पहचान बढी! एक दुसरे से रोजाना बाते करना और मिलनेका सिलसिला शुरु हो गया! 
     महक राजन पर अंधविश्वास करती थी! राजन भी उसको हर बात बताने लगा! ऐसेही एक दिन वे दोनो मिले और उनमें एक अनचाही बात होती हैं!
      उसके बाद राजन का फोन बंद  आता हैं! महक उसको मँसेज करती हैं, पर वे उसका रिप्लाय नहीं देता हैं! 
      ईधर  महक की जीवन में तुफान आता हैं! वो प्रेगनंट हो जाती हैं! उसके माता पिता को कुछ समझनहीं आता की क्या करे? मा पिता उसे पुछताछ करते हैं , वे कुछ बता नहीं पाती हैं! क्योकि राजन ने अपना नंबर बदल दिया होता हैं! 
महक अपना ख्याल नहीं रख पाती हैं , और.अपने बच्चे को खो देती हैं! 
इस घटना से उसके दिमागपर असर होता हैं! उसके माता- पिता उसे इलाज के म्हैसुर  शहर ले जाते हैं! वहा मोहन नामका डाँक्टर उसका इलाज करता हैं!  
मोहन को वो अच्छी लगने लागती हैं! 
     मोहन की भी बिवी की मौत हुई होती हैं!  महकके हालत सुधरने लगती हैं, और मोहन उसे प्यार करने लगता हैं! मोहन महक के माता- पितासे महक का हात माँगता हैं! उसके माता- पिता हामी भर देते हैं! महक भी उसे चाहने लगती हैं , लेकिन उसके साथ जो  हो चुका होता हैं उससे वे सांशक होती हैं! वे अपनी बात सबके सामने रखती हैं! मोहन उसके हर सवाल का  जवाब देता हैं, और वे शादी के लिये हामी भर देती हैं! 
     दोनो को एक दुसरेमें दोस्त मिल जाता हैं, जो हर हाल में साथ दे सकता हैं! 
      तो दोस्तो इस कहानी से मैंने लोगोकी नियत और सच्चे प्यारको पहचाननेकी  नजर यह दिखानेकी कोशिश की हैं!©®
अभिलाषा.देशपांडे 


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जीवन परिचय *** डॉ प्रताप मोहन "भारतीय" 


जन्म -15 जून1962 को कटनी (म.प्र.) 
पिता का नाम - श्री गोविन्दराम मोहन
माता का नाम - श्रीमती ईश्वरी देवी
शिक्षा - बी. एस. सी., आर. एम. पी.,एन. डी., बी. ई. एम. एस. , एम. ए.,एल. एल. बी.,सी. एच. आर.,सी. ए. एफ. ई.,एम. पी.ए.
सम्प्रति - दवा व्यवसायी
संपर्क - 308,चिनार ए - 2,ओमेक्स पार्क  वुड,चक्का रोड , बद्दी - 173205(हि. प्र.)
चलित दूरभाष-9736701313,9318628899 ,
अणू डाक - DRPRATAPMOHAN@GMAIL.COM
लेखन की विधाए - क्षणिका ,व्यंग्य लेख , गजल , साहित्यक गतिविधीयाँ - राष्ट्रीय स्तर के पत्र , पत्रिकाओ में रचनाओ का प्रकाशन
प्रकाशित कृतियां - उजाले की ओर (व्यंग संग्रह)
पुरस्कार एंव सम्मान
(1) साहित्य परिषद् उदयपुर राजस्थान द्वारा "काव्य  कलपज्ञ" की उपाधि से सम्मानित
(2) के.बी. हिन्दी साहित्य समिति बदांयू ((उ. प्र.) द्वारा "हिन्दी भूषण श्री" 2019 की उपाधि से सम्मानित
(3) नालागढ़ साहित्य कला मंच हि. प्र. द्वारा "सुमेधा श्री 2019" सम्मान प्राप्त ।


काव्य रँगोली नेह सनेह ऑनलाइन प्रतियोगिता परिणाम 2020

नेह -सनेह प्रतियोगिता में प्रविष्ट सभी रचनाओं के गहन अवलोकन के बाद, रँगोली टीम द्वारा चयनित रचनाकारों की सूची के गहन अध्यन के उपरांत आदरणीय कवि समाजसेवी विक्रम कुमार जी निवासी वैशाली बिहार द्वारा दस सम्माननीय रचनाकारों की एक सूची तैयार की गयी है । चूंकि, प्राप्त रचनाओं में अधिकांश रचनाएं त्रुटिपूर्ण एवं मात्रादोष युक्त पाईं गईं । इस लिए उन रचनाओं को नजर अंदाज कर दिया गया है । परन्तु उनमें सारगर्भित रचनाओं का समावेशन भी देखने को मिला । वैसे रचनाकार जिनकी रचनाएं सारगर्भित, संदेशपरक एवं भावपूर्ण थीं तथा जिनमें कोई त्रुटि न थी , वैसे शीर्ष दस लोगों की रचनाएं निम्नांकित हैं हमारा उद्देश्य शुद्ध लेखन का है अतः पुरस्कृत होना न होना प्रतिष्ठा से न जोड़कर अच्छा टंकण त्रुटि से मुक्त लेख का प्रयास करे- 
मुख्य निर्णायक
कवि विक्रम कुमार
 वैशाली बिहार 
मो0 +919709340990
काव्य रँगोली टीम-----
1. डॉ . शोभा दीक्षित " भावना"
2. भरत नायक " बाबूजी"
3. सुरेश चंद्र "सर्वहारा"
4. नीलम मुकेश वर्मा 
5. सुरेंद्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक ati कानपुर
6. चंद्रपाल सिंह
7. अभिजित त्रिपाठी
8. अनामिका श्रुति सिंह
9. विजय कनौजिया
10. सीमा शुक्ला अयोध्या


 


प्रदीप कुशवाह आत्मानन्द अतिविशिष्ट सम्मान से होंगे सम्मानीति

उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान द्वारा 1 लाख रुपये नकद एवम अति विशिष्ट सम्मान ।कवयत्री महादेवी वर्मा पुरस्कार हेतु श्री कुशवाह जी का चयन उनकी पद्य कृति अमृतांगन के लिए 15 मार्च 2020 को यशपाल सभागार उ0प्र0 हिंदी संस्थान में प्रदान किया जायेगा।श्री प्रदीप कुशवाह जी काव्य रंगोली से संस्थापन के समय से जुड़े हुए है । आप वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कृषि निदेशक कार्यालय से सेवा निवृत्त हो चुके है।एवम आप ने अपना सम्पूर्ण समय शिक्षा साहित्य और समाजसेवा को अर्पित कर दिया है तथा आज के समाज मे प्रेरणा स्रोत के रूप में उदीप्तमान हो रहे है।


लखनऊ बाराबिरवा रायबरेली रोड पर निवास करने वाले महनीय व्यक्तित्व आप ने षटपद नामक हिंदी को एक नई विधा तो दी ही अनेक ग्रन्थों की भी रचना की जो कि हिंदी साहित्य में मिल का पत्थर है।आप ने धर्म और आध्यात्मिक शिक्षक बूते अपने हजारो शिष्यों की जीवन का सार बतलाते हुए उन्हें सन्मार्ग पर चलने हेतु पथ प्रदर्शन कर रहे है ।


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प्रदेश राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान द्वारा 1 लाख रुपये नकद एवम अति विशिष्ट सम्मान ।कवयत्री महादेवी वर्मा पुरस्कार हेतु श्री कुशवाह जी का चयन उनकी पद्य कृति अमृतांगन के लिए 15 मार्च 2020 को यशपाल सभागार उ0प्र0 हिंदी संस्थान में प्रदान किया जायेगा।श्री प्रदीप कुशवाह जी काव्य रंगोली से संस्थापन के समय से जुड़े हुए है । आप वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कृषि निदेशक कार्यालय से सेवा निवृत्त हो चुके है।एवम आप ने अपना सम्पूर्ण समय शिक्षा साहित्य और समाजसेवा को अर्पित कर दिया है तथा आज के समाज मे प्रेरणा स्रोत के रूप में उदीप्तमान हो रहे है।


लखनऊ बाराबिरवा रायबरेली रोड पर निवास करने वाले महनीय व्यक्तित्व आप ने षटपद नामक हिंदी को एक नई विधा तो दी ही अनेक ग्रन्थों की भी रचना की जो कि हिंदी साहित्य में मिल का पत्थर है।आप ने धर्म और आध्यात्मिक शिक्षक बूते अपने हजारो शिष्यों की जीवन का सार बतलाते हुए उन्हें सन्मार्ग पर चलने हेतु पथ प्रदर्शन कर रहे है ।


काव्य 


 


 


प्रदीप कुमार कुशवाह आत्मानन्द लखनऊ सम्मानीति होंगे।

प्रदेश राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान द्वारा 1 लाख रुपये नकद एवम अति विशिष्ट सम्मान ।कवयत्री महादेवी वर्मा पुरस्कार हेतु श्री कुशवाह जी का चयन उनकी पद्य कृति अमृतांगन के लिए 15 मार्च 2020 को यशपाल सभागार उ0प्र0 हिंदी संस्थान में प्रदान किया जायेगा।श्री प्रदीप कुशवाह जी काव्य रंगोली से संस्थापन के समय से जुड़े हुए है । आप वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कृषि निदेशक कार्यालय से सेवा निवृत्त हो चुके है।एवम आप ने अपना सम्पूर्ण समय शिक्षा साहित्य और समाजसेवा को अर्पित कर दिया है तथा आज के समाज मे प्रेरणा स्रोत के रूप में उदीप्तमान हो रहे है।


लखनऊ बाराबिरवा रायबरेली रोड पर निवास करने वाले महनीय व्यक्तित्व आप ने षटपद नामक हिंदी को एक नई विधा तो दी ही अनेक ग्रन्थों की भी रचना की जो कि हिंदी साहित्य में मिल का पत्थर है।आप ने धर्म और आध्यात्मिक शिक्षक बूते अपने हजारो शिष्यों की जीवन का सार बतलाते हुए उन्हें सन्मार्ग पर चलने हेतु पथ प्रदर्शन कर रहे है ।


काव्य रंगोली टीम


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

...........तन्हाइयों के शहर में.............


तन्हाइयों के शहर में दोस्त नहीं मिलते।
स्वार्थियों केशहर में दोस्त नहीं मिलते।।


हर शहर है आततायिओ के गिरफ्त में ;
इनलोगो केशहर में दोस्त नहीं मिलते।।


जिधर देखें,एहसान फरामोश पटे पड़े ;
ऐसों के शहर  में  दोस्त  नहीं  मिलते।।


हर शहर में गद्दारों का ही है बोलबाला;
गद्दारों के शहर  में दोस्त  नहीं मिलते।।


आए दिन दगाबाजी  से रहते  हैं  त्रस्त ;
दगाबाजों केशहर में दोस्त नहीं मिलते।


हर तरफ कमिनापनी में आपाधापी है ;
कमीनों के शहर में दोस्त नहीं मिलते।।


अब तो उठा ले ऊपरवाले ऐ "आनंद" ;
बेईमानों के शहर में दोस्त नहीं मिलते।


------- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


   डा.नीलम

*मैं बावरी हो गई*
*******************
सारी बातें खत्म हुईं
जब मेरी धड़कन
तेरी धड़कन हुई,


लबों पे थिरकती 
आँखों में तैरती ही
रह गयी
तुझसे कुछ 
कहने की चाहत,
लब मेरे ,तेरे लबों से
जब छुए


थिर हो गये
ख्वाब सारे
कदम लड़खड़ाए मेरे
इक सुरुर-सा
रुह पर छाने लगा
जबसे मेरी साँसे
तेरी साँसों में गुम हुई।


मैं बावरी हो गई
ओढ़ चुनरिया
तेरे नाम की।


     डा.नीलम


सुनीता असीम

बुराई की अकेले ही खिलाफत क्यूँ नहीं करते।
अगर शिकवा किसी से हो शिकायत क्यूँ नहीं करते।
***
नहीं जालिम अगर राजा तो उसका साथ भी देना।
बगावत की आवाजों पे मलामत क्यूं नहीं करते।
***
सभी का है वतन अपना चमन इसको बना देंगे।
मुहब्बत है वतन से तो मुहब्बत क्यूँ नहीं करते।
***
नहीं है फायदा कोई यूँ आपस में झगड़ने का।
अगर सम्मान है इसका जियारत क्यूँ नहीं करते।
***
सही क्या है गलत क्या है डगर सच की बताकर यूँ।
सभी माँ-बाप बच्चों को हिदायत क्यूँ नहीं करते।
***
सुनीता असीम
२०/२/२०२०


कालिका प्रसाद सेमवाल        मानस सदन अपर बाजार        रूद्रप्रयाग(उत्तराखंड)

मधुर स्मृति
*********
      आज मैं तुम्हें न पा सका,
      इसलिए न गीत गा सका।
बहार फूल तो खिले मगर,
मिले उसे भ्रमर न हो‌ अगर,
तो आश क्या कि फूल की उमर,
हंसे नियति हिलोर में लहर।


        जोहता रहा तुम्हे सदा,
         उठी कसक न मैं भगा सका।


लगी आज टकटकी  उधर,
चली गई थी रूठकर जिधर
हुआ हताश आज मैं मगर,
रहे न याद प्यार के प्रहर,


      ‌ रही सदा सुदूर प्राण, तुम
       इसीलिए तुम्हें न पा सका।


पी रही हैं जिन्दगी जहर,
घिर रही है वेदना घहर,
कट रही है व्यर्थ ही उमर,
निराश दीप जल रहा लहर,


       कुविघ्न पर कुविघ्न झेलता,
       पुकारता तुम्हें न पा सका।।
****************************
      कालिका प्रसाद सेमवाल
       मानस सदन अपर बाजार
       रूद्रप्रयाग(उत्तराखंड)
        पिन 246171


_प्रखर दीक्षित*    *फर्रुखाबाद

गीत


गीत


_आज फिर........_ 


आज फिर देर थी, वो रूठी लगी।
मीठे ताने सुने, वो अनूठी लगी।
 _आज फिर........_ 


थी शरद रात पूनम, चंद्रमा नॉन खिला।
मौन था जब मुखर, चैन दिल को मिला ।।
होंठ कंपन बढ़ा, सुर्ख रंग भी चढ़ा,
बाद बरसों के  वो, नव वधूटी लगी।।
_आज फिर........_ 


कभी जेठ तपती कभी मधुमय अमिय।
कभी हमदम बने, कभी प्रेमिल सा पिय।।
वो संवारे सदा, पूर्ण करती वदा,
प्रेम प्रस्ताव पाकर अनूठी लगी।।
_आज फिर........_ 


वो सहारा सलाहकार साथी परम।
प्राण प्रण से निभाती गृहस्थी धरम।।
कोई कुछ भी कहे, फूल कांटे सहे,
तिय समर्पण में दुनियाँ झूठी लगी ।।
_आज फिर........_ 


बन के पूरक रहे कट गया यूँ सफर।
मन मयूरा सुहाना वो तारे डगर।। 
कभी मैंने कहा, कभी उसने कहा।
कभी नमकीन प्रेयसी मीठी लगी।।
_आज फिर........_ 



 *_प्रखर दीक्षित*
   *फर्रुखाबाद*_


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

दिनांक: २०.०२.२०२०
वार: गुरुवार
विधा: दोहा
छन्द: मात्रिक
विषय: मर्यादा
शीर्षक: जीओ मर्यादित विनत
झंझावातों    से     सजा , है   जीवन    संसार।
रखो   धैर्य  बन   साहसी , आए    प्रीत  बहार।।१।।
सदा चलो तुम नेक पथ , रखो   स्वयं  विश्वास।
अंत  मिलेगी सफलता , मधुरिम सच  आभास।।२।।
आएंगी    चोटें    ज़ख़्म , टूटोगे      सौ   बार।
पर  मानो   न    हार  तुम , बनें   रहो   खुद्दार।।३।।
मर्यादा    तोड़ो   नहीं ,  जो   जीवन   आचार।
चलो  सत्य   परहित मना , राष्ट्र धर्म   आधार।।४।।
वारिश   होंगी लांछना , डगमग  होंगे  लक्ष्य।
दुख  विषाद  ढाए कहर , किन्तु सत्य  संरक्ष्य।।५।।
राम  राज्य  परिकल्पना , सत्य न्याय सम्मान ।
त्याग शील  गुण कर्म  में , मर्यादा  रख  ध्यान।।६।।
शान्ति  प्रेम   सद्भावना ,मर्यादित  अभिव्यक्ति।
हो समाज  या  राष्ट्र हित , बनती जीवन शक्ति।।७।।
जीओ  मर्यादित  विनत , रहो  वतन  के साथ।
करो   समादर  आपसी ,  सहयोगी  हो   हाथ।।८।।
मर्यादित  हो  आचरण , हो  मर्यादा     क्रान्ति।
आहत न  पर  भावना , मत   फैलाएं   भ्रान्ति।।९।।
बन निर्माणक राष्ट्र का,हों जन गण सुखधाम।
मर्यादित   निरपेक्ष  नर , हो  पुरुषोत्तम   राम।।१०।।
मर्यादित  जीवन  सफल , राम चरित  सद्भाव।
जाति धर्म  भाषा वतन ,  मत  बांटो  दे  घाव।।११।।
तोड़ो मत इस देश को , रच  न  शाहीन  बाग।
साथ चलो मिलकर वतन , लोकतंत्र अनुराग।।१२।।
मर्यादित    सम्बन्ध  हो , चाहे   देश  समाज।
निर्मल मन भारत चमन , रामराज्य  आगाज़।।१३।।
मर्यादित  हो  लेखिनी , प्रेरक   युवजन  चित्त।
बनें  आईना प्रगति का , प्रीति अमन  आवृत्त।।१४।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


श्याम कुँवर भारती [राजभर] कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,

महाशिवरात्री के अवसर पर
हिन्दी शीव भजन-14-तू है भोला भण्डारी 
जन्मो जन्म से  शिव तेरा मै पुजारी |
कर दो कृपा तू है भोला भण्डारी |
कालो के काल तुम्ही हो |
अनाथों के नाथ तुम्ही हो |
देवो मे महादेव तू है त्रिपुरारी |
कर दो कृपा तू है भोला भण्डारी |
चरण मे छोड़ शिव बोलो कहा जाऊ|
तेरे शिवा जग किसी कुछ न पाऊँ |
तेरी कृपा परूँ होगी कमाना हमारी |
कर दो कृपा तू है भोला भण्डारी |
गौरा के स्वामी तुम हो |
जगत अंतर्यामी तुम हो |
जनम मरण रहती हाथो तुम्हारी |
कर दो कृपा तू है भोला भण्डारी |
ब्र्म्हा ने पूजा तुमको है |
विष्णु ने पुजा तुमको है |
तुमको पूजे शिवदानी सारा संसारी |
कर दो कृपा तू है भोला भण्डारी |


श्याम कुँवर भारती [राजभर]
कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,
मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


प्रिया सिंह लखनऊ

कुछ जान बूझ कर तो कुछ अनजाने में हो गई 
बहुत शारी गलतियाँ मुझसे समझाने में हो गई 


अपनों ने एक- एक कर साथ छोड़ दिया मेरा 
मुझे बहुत देर शायद उनको मनाने में हो गई


मोहब्बत यूँ तो खुलेआम ज़हर का व्यापार है 
बहुत बड़ी ख़ता दाम उनका लगाने में हो गई 


इश्क में शब-बे-दारी तो जायज है मेरे दोस्तों  
ये क्या रात पूरी उनसे सच जताने में हो गई 


ऐसे क्यों तुम खंगालती हो रोज मय को "प्रिया"
कैसी सरेआम बेइज्ज़ती मेरी मयखाने में हो गई 


 


 


Priya singh


परिचय कुसुम सिंह 'अविचल' कानपुर

नाम--डॉ०कुसुम सिंह 'अविचल'
पता--1145-एम०आई०जी०(प्लॉट)
रतनलाल नगर
कानपुर-208022
मो०-8318972712
       9335723876
कविता--
                "नमन राष्ट्र के प्रहरी को"
नत है मस्तक सैनिकों के लौह से व्यक्तित्व दृढ़ को,
व्योम से जो उतर भू पर धन्य धरती कर गए है।
दी है दस्तक मृत्यु ने भी डर पे आ के,बन मृत्युंजय
शौर्य से अपने उसे भी मात देने को अड़ गए हैं।
दुश्मनों के घात पर प्रतिघात करने की मनाही,
आदेश की करते प्रतीक्षा,तन को घायल कर गए हैं।
हार न मानी कभी भी,विकट हों या विषम स्थितियां,
बन के आंधी दुश्मनों के दांत खट्टे कर गए हैं।
है जिनका चट्टानी वो सीना, तन तना हिमगिरि के जैसा,
बन खड़ा बौना हिमालय जब वो उसपर चढ़ गए हैं।
तड़तड़ाते टैंक तोपें,आग उगले गन मशीनें,
निडर सैनिक दुश्मनों के दर पे जाके भिड़ गए हैं।
फट गए ज्वालामुखी से,लावा फूटा छू गया नभ,
चिंगारियां बिखरी धरा पर,आग में वो तप गए हैं।
फौलादी सैनिक आग उगले, भय भी उनसे डर गया है,
काल बनके दुश्मनों पर कहर बरपा कर गए हैं।
रणभूमि से भागे कभी न,पीठ पर गोली न खाई,
रौंदते दुश्मन को अपना सीना छलनी कर गए हैं।
धराशायी भी हुए यदि नाम होगा आसमान तक,
शत्रु के स्मृतिपटल पर नाम अपना जड़ गए हैं।
अवनि अम्बर गम में नम हैं,दसों दिशाएं रो रही हैं,
सैन्य वाहनों पर शव शहीदी,लिपट तिरंगे में आ गए हैं।
माँ के आंचल से दुग्ध धारा,आंख से बहता सिंधु खारा,
पथरा गयी आंखे पिता की,लाल उनके सो गए हैं।
प्रकृति भी गमगीन सी है,कुसुम शाखों से झर रहे हैं,
झुक गया है राष्ट्र ध्वज,अंतिम नमन को कह गए हैं।
शौर्यता की अमर गाथा,गाएंगी सदियां युगों तक,
भारती के लाल जो अद्भुत कहानी गढ़ गए हैं।
शब्द कविता अँजुरी में भावना बनकर भरे हैं,
श्रद्धांजलि उनको समर्पित,बलि की वेदी जो चढ़ गए हैं।
इतिहास साक्षी बन कहेगा,त्याग की गाथा निरन्तर,
अनुकरण होता रहेगा,प्रेरणा जो बन गए हैं।
मांग का लालित्य बिलखा,रो पड़ी सब राखियां हैं,
लोरियां क्रंदन में डूबी,बाजू भाई के कट गए हैं।
गाँव रोता,होता गर्वित, गाँव का बेटा गया है,
देश की माटी की खातिर,उत्सर्ग अपना कर गए हैं।
                                     जयहिन्द,वन्दे मातरम
                       रचनाकार--कुसुम सिंह 'अविचल'
मो०8318972712        1145-एम०आई०जी०(प्लॉट)
      9335723876        रतनलाल नगर    
                                    कानपुर-208022(उ०प्र०)


कुमार कारनिक    (छाल, रायगढ़, छग)

मनहरण घनाक्षरी
(शिल्प-८,८,८,७=31वर्ण
युगल पद तुकांत अंत गुरू)
      ----------------
    *शिव महिमा*
      ----------------
बम भोले  शिव  नाथ
  डमरू   त्रिशूल   हाथ
   मिलेगा शंभु का साथ
       भोले जी भंडारी हैं।
🌼🌹
काल   रूप   महादेव
  तुम  देवों  के हो  देव
   औघटदानी  है  बाबा
          शिव त्रिपुरारी हैं।
🌻🌼
जग   का  पालनहार
  पापी का करे  संहार
   भव   का   खेवनहार
           तू प्रलयंकारी हैं।
🌼🌻
प्रभु   सुन ले   विनय
  दूर   होत   है   अनय
   देवे  सबको  आशीष
         जग हितकारी हैं।


  
 *ओम् नमः शिवाय*
******************


सीमा शुक्ला अयोध्या

ऊं नमः शिवाय!
है गंगधार शोभित कपाल,
कर से संहार त्रिशूल करे।
लिपटी भुजंग की माल कंठ 
भोलेशंकर सब शूल हरे।


मुख चन्द्र भाल ,तन ढके छाल,
अद्भुत श्यामल शिव की काया।
दर्शन से जाता  दूर काल,
जग मे फैली शिव की माया।


 जग सुनता तेरी महिमा को,
करते हो जब तुम शंखनाद।
सागर की लहरे झूम झूम,
कल कल करती रहती  निनाद।


देवों के हो तुम महादेव
तुम अजर अमर हो अविनाशी
हे दयावान कैलाश पती,
नभ जल थल के घट घट वासी।


 
ये धरती अम्बर डोल उठा,
थर थर कांपा हिम का आलय।
जब नयन तीसरा खोले हो
तब तब आई है महाप्रलय।


मुख मंडल से छूकर तुमको 
पावन गंगा का पानी है।
हे महादेव महिमा तेरी 
युग युग मे गई बखानी है।


जग भर को देकर दान सुधा,
निज कंठ गरल का पान किया।
जब जब चरणो मे शीश झुका,
जग जीवन का कल्यान किया।


सीमा शुक्ला।


डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

महाशिवरात्रि- 2020
छंद - मत्तगयंद सवैया (वार्णिक छंद )


शैल सुता मनुहार करे प्रभु संत दिगंबर धूनि रमाये ।
शंभु शिवा द्वय एक हुए शुभ पर्व महा शिवरात्रि कहाये ।   
कंत महेश उमा अति पावन फागुन मास विशेष बनाये ।
धूम मची बम बं लहरी चहुँ आज सखी शिव व्याहन आये।


रूप अनूप त्रिनेत्र धरे भुज दण्ड कमंडल शूल उठाये ।     
भाल त्रिपुंड ललाट महा मृगछाल सजा तन भस्म लगाये।     
भूत पिशाच बरातिन सेवक से गण मीत समाज बनाये ।
गाल फुला सब शंख बजा चहुँ ओर दिगंतर धूम मचाये।     


नाम जटाधर गंग बहे शशि  शेखर से मन भृंग लुभाये ।
मातु सती वरमाल लिए पितु शंकर भाल सुहाग सजाये।
लाल महावर पाँव  रचा जब  नूपुर के धुन मंगल गाये ।
दक्ष सुता अभिसार करे शुभ संग सजे  त्रिपुरारि सुहाये ।
                                           डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर      गोरखपुर उत्तर प्रदेश-----

भोला  शंकर औघड़दानी ब्रह्माण्ड का पालन कर्ता ।।                 


जीव जीवन आत्मा का परमात्मा ।।      
                                       कराल विकराल महाकाल शिवा सत्य सत्यार्थ।।                      


तन में भस्म लगाये पहने मृगछाला।।                        


मुकुट भाल का चाँद जटाओ से बहती पतित पावनि गंगा की निर्मल निर्झर अविरल धरा।।     


कर सोहे डमरू त्रिशूल गले में नाग की माला।।                   


भांग धतूर ही भावे जगत कल्याण को विष पान कर नीलकंठ कहलाये।।                         


 पर्वत पर रहते महल अटारी ना भावे पत्ता कन्द मूल भाव से जो मिल जाए भाये भक्तन को छप्पन भोग पकवान खिलावे।।          


सती सत्य का सत्कार               हिम हिमालय की बाला पार्वती अंकिकार।।
रूद्र रौद्र  घोर घनघोर सत्य का साक्ष्य सत्य अनंत निराकार निर्विकार ।।                         


आग अंगार नीर छीर समीर अवनि आकाश तत्व तथ्य मूल सम्पूर्ण।।                              


ग्रह नक्षत्र काल की चाल भुत प्रेत पिचास नंदी भैरों गण ऋतुएँ मौसम की काल चाल मुंकार ।।


ब्रह्माण्ड का न्यासी सन्यासी स्वायम्भू शाश्वत शम्भू ओंकार।।


दीन् दुखियों के दाता आनाथन के नाथ शिव साक्षात्               करालम महाकाल  ।।               


करालं कृपालं त्रिनेत्र धारी महापालक महापरलय प्रधान।।             


तांडव रौद्र रूप शंकर मोक्ष मार्ग ।श्मशान के देवता आदि मध्य अवसान देवोँ के देव महादेव की महिमा अपरम्पार।।


अशुभ अन्धकार मुंड माल तपसी मनीषी सतोगुणी रजोगुणी का निश्चय निर्वाण।।                                              


सर्व व्यापी सर्वेश्वर वेद् पुराण    शुभ मंगल गजानन षडानन के जन्मदाता विघ्न विनाशक मंगलकर्ता।।                        


ज्ञान वैराग्य के ईश नामामिशम गिरीश।।                              


जय जय शिव शंकर बम बम भोले हर हर महादेव।।           


आई शिव रात्रि आई वसंत की वहार शिव पार्वती की बरात लाई।।                                



दूल्हा शिव दुल्हिन पार्वती का मिलन स्वर्ग में अप्सरा नाचे देव दुन्दभि बाजे हिमालय द्वारे बाजे शहनाई।।                             


 


शिव रात्रि आई ब्रह्माण्ड में बधाई सखिया सहेलिया करत अठखेलिया वर बौराहवा पावा ।।


मैना हुई अचेत वर देख ब्रह्मा विष्णु ने मैना को समझावा त्रिपुरारी भुवंस्वामी वर वरण सौभाग्य त्याग तपश्या से पार्वती ने पावा।।                             



सृष्टि का निर्माता भाग्य विधाता का दर्शन पावन युग युग जन्म जन्म जप तप सद्कर्म कर फल ।।                                       


सोई शिव शंकर चंद्र्शेखर जामाता तुमरे द्वारे आवा।।सुन मैना नस्वर संसार में देव दानव का प्यारा अर्धनारीश्वर दामाद तुम्हारा।।                           



पार्वती जगत जननी जगत कल्याणी माता।।                   


शुभ शिव रात्रि


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर      गोरखपुर उत्तर प्रदेश-----


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