अर्चना द्विवेदी अयोध्या उत्तरप्रदेश          सरस्वती वंदना

अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश


         सरस्वती वंदना
माँ शारदे की वीणा,झंकार कर रही है
अज्ञान के तमस से,हमें दूर कर रही है


आसन कमल विराजे,शुभ्र वस्त्र धारिणी है
मस्तक मुकुट है साजे,भय शोक तारिणी है


आभा मुखार विंद की,शोभा बढ़ा रही है।
अज्ञान के तमस से,हमें दूर कर रही है।।


मीरा सी भक्ति देना,विषपान भी बने सुधा
दुर्गा सी शक्ति देना,दैत्यों से मुक्त हो वसुधा


वरदायिनी है मैया,वरदान दे रही है।
अज्ञान के तमस से,हमें दूर कर रही है।।


महिमा तेरी है दिखती,रंगों में नजारों में
ज्ञान चक्षु खोलती है,मंदिर में गुरुद्वारों में


जगती बनी जगत को,लीला दिखा रही है ।
अज्ञान के तमस से,हमें दूर कर रही है। ।


मौसम हुआ बसन्ती,कलियाँ भी झूमती हैं
तरु लद गए हैं बौर से,कोयल भी कूकती है


तिथि पंचमी से ऋतु की,सूरत बदलरही है।
अज्ञान के तमस से हमें दूर कर रही है।।


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