अनीता मिश्रा सिद्धि झारखण्ड

मन से मन का बन्धन हो।
💐💐💐💐💐💐


तुम भी मौन  मैं भी मौन,
फिर भी दोनों के हृदय में स्पंदन हो।


तुम मत सोचो न मैं सोचूँ,
फिर भी भावों का सँगम हो।


मैं हूँ दूर तुम भी दूर ,
मिलन की बस तड़पन हो।


तुम मत गाओ नहीं मैं गाऊँ,
फिर भी सुरों का नर्तन हो।


इस बसन्त में आज है कहना,
मन से मन का बंधन हो।


अनीता मिश्रा 
8/2/2020
💐💐💐


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...