अतुल मिश्र गायत्रीनगर अमेठी

    [विस्मृत हुआ कर्तव्य]


लाचार है मात-पिता,
पुत्र नही श्रवण।
हर घर की है ये दशा,
विस्मृत हुआ कर्तव्य ।।


 मन संकुचित हो रहा,
स्वयं पुत्र रत्न।
निष्ठुर हो गया या,
विस्मृत हुआ कर्तव्य ।।


मिला हुआ वो जख्म,
फूटा हुआ है अंश।
कर्म प्रताप का व्यय यह, 
विस्मृत हुआ कर्तव्य ।।


  मातृ-पितृ की ममता का,
  हो रहा विध्वंस।
  दुनिया की यह बनीं प्रथा, 
  विस्मृत हुआ कर्तव्य ।। 


उम्मीद टूटी, भ्रम झूठा, 
हार गया हर जत्न। 
मानवता पर अभिशाप यह, 
विस्मृत हुआ कर्तव्य ।। 


............ ATUL MISHRA................


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