डा.नीलम.अजमेर

*चित्र की महक*
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बड़े दिनों के बाद
किसी बिसरी खुश्बू का 
अहसास आया
दरवाजे पर जब 
डाकिया बाबू आया


पाँवों में शर्म की बेड़ियों ने
दहलीज पर रोक दिया
मन प्रफुल्लित, तन शिथिल था/ थामने को मेरे दोस्त का साया मेरे साथ था


शिद्दत से वो मोगरे की
महक में डूबा खत पढ़ता रहा
हर शब्द से प्यार का
रस छलकता रहा


आगाज जिस खूबसूरती से
बयां हुआ
रुआं रुआं मेरा प्रेम- रस में
भीगता रहा


सुध न रही गात की कुछ
हृदय झंकृत होता रहा
अंजाम तक आते -आते
खत के डाकिया मुस्करा गया


बड़े ही प्यार से वो
मेरी प्रिया ,बावल़ी
कह गया ।


         डा.नीलम.अजमेर


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