गनेश रॉय "रावण" भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

"गाँव का ईश्क़"
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चोरी-चोरी चुपके-चुपके
गलियों से जब गुजरती थी
आँखों में शर्म होठों पे लाली
जब श्रृंगार वो करती थी


दूर से देखती और शर्माती
नैन चार वो करती थी
जब भी कहती कोई बात मुझसे
पैरों की, उँगलियाँ दिखाया करती थी
जब भी मिलता उनसे कभी
वो सीने से लिपट जाया जाती थी
एक शब्द भी नहीं निकलता मेरा
जब उँगली अपने ...
मेरे होठ पर रख देती थी


वो गाँव का ईश्क़ है साहिब
जो आज भी करने को मन करता है
चोरी-चोरी चुपके-चुपके
वही नैन चार करने को मन करता है


मिलने की चाहत में 
आज भी दीवार फांदने को मन करता है
रखके सर आँचल में उसके सोने को मन करता है
ये गाँव का ईश्क़ है साहिब
क्यो बार - बार करने को मन करता है ।


गनेश रॉय "रावण"
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


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