बबली सिन्हा (गाज़ियाबाद)

मैं कहां कुछ लिख पाती हूँ
न कुछ देख पाती हूँ
न कुछ  समझ पाती हूँ


सच ही तो है
जिंदगी प्रेम में पड़ी है
फिर और कुछ कहां 
दुनिया, संसार.....


शायद इसलिए कहते प्रेम अंधा होता 
पर प्रेम का तात्पर्य 
मन और देह का केवल
आनन्दमय सुखद मिलन एहसास नहीं


बल्कि इसमें समाहित है 
फूलों का चमन और 
आंसुओं का खारा समंदर भी


एक आवरण है प्रेम
जो प्रकृति पद्दत है
जज्बातों का घना संसार 


जिसमें भावनाएं वस्त्र की तरह
देह के रोमकूपों में सिंचित होती
सम्वेदनाओं से भरी ऊर्जा
हमें सम्मोहित, आकर्षित करती 


हम खुद को रोक नहीं पाते 
उसके लिए जीते 
और कभी मर भी जाते 


पर प्रेम जिंदा रहता सदैव
ऐसा समझो !
एक जादुई घरती का सच है प्रेम।


बबली सिन्हा
(गाज़ियाबाद)


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...