नूतन लाल साहू

क्रोध न किजै
क्रोध हरै, सुख शांति
अंतर प्रगटै, आग
सत संगति में जाइये
विद्या सम धन,न आन
तेरा निर्मल रूप,अनूप है
नहीं हाड़ मांस की,काया
नाम रूप मिथ्या जग सारा
तू है,सत्य जगत से न्यारा
क्रोध हरै, सुख शांति
अंतर प्रगटै, आग
सत संगत में जाइये
विद्या सम धन न आन
निराकार निर्गुण अविनाशी
चेतन अमल सहज सुखरासी
अलख निरंजन सदा उदासी
तू ब्यापक,ब्रम्ह स्वरूप है
क्रोध हरै,सुख शांति
अंतर प्रगटै, आग
सत संगत में जा इये
विद्या सम धन न आन
समझ जा मन,मीठा बोल तू
वाणी का बाण,बहुत बुरा होता है
वाणी से प्रीत,होय बहुत गहरी
शब्दों से ही,हो जाय जग बैरी
क्रोध हरै, सुख शांति
अंतर प्रगटै, आग
सत संगत में जाइये
विद्या सम धन न आन
नूतन लाल साहू


 


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