*माता-माहात्म्य के दोहे*
आया शुभ नव-रात्रि अब,करो मातु नित ध्यान।
भजो मातु हर रूप को,होगा शुभ कल्याण।।
शक्ति-ज्ञान-धन दायिनी,विविध रूप आगार।
भक्तवत्सला मात ही,है जीवन-आधार।।
पूजन-अर्चन-स्मरण,जो जन करते रोज।
उनका हित नित-नित करें,माता-चरणसरोज।।
यद्यपि माँ ममतामयी,पर माँ बने कठोर।
करे नाश रिपु शीघ्र ही,संकट जो दे घोर।।
सिंह-वाहिनी चंडिका,शीघ्र ग्रहण कर रूप।
भक्त निकट माँ पहुँचकर,बधे जो शत्रु कुरूप।।
हंस-वाहिनी रूप में,वीणा की झंकार।
ज्ञान-साधना-गीत-स्वर,को देती विस्तार।।
शक्ति-ज्ञान का स्रोत माँ, करुणा-सिंधु अथाह।
माँ-स्तुति-डुबकी करे,जीवन-स्वस्थ-प्रवाह।।
गिरिजा-पूजन से मिले,अनुपम वर श्रीराम।
धन्य मातु तू जानकी,तमको नमन-प्रणाम।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें