लिखते जाना अमर कहानी"
चलते फिरते सोते उठते
खाते पीते गायन करते
हाथ जोड़कर बातें करते
लिखते रहना अमर कहानी।
धूप छाँव में नदी नाव में
स्वयं गाँव में दुःखित घाव में
थकित पाँव में व्यथित चाव में
लिखते जाना अमर कहानी।
हृदय-सून में अधिक-न्यून में
काव्य-धून में हनी-मून में
मधु जुनून में प्रिय प्रसून में
लिखते चलना अमर कहानी।
कल-कछार में नदी नार में
घर दुआर में सहज प्यार में
प्रीति-सार में मददगार में
यादगार में दर्दखार में
दिलशुमार में गंगधार में
इक कतार में निपुण न्यार में
लिखते जाना अमर कहानी।
घृणा-प्रीति में सकल रीति में
सहजासहज नीति-गीति में
कृतिकाकृति की सब संस्कृति में
लिखते जाना अमर कहानी।
नमस्ते हरिहरपुर से---
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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