चोट दिल पे ज़रा लगी सी है।
दर्द में आज कुछ कमी सी है।
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याद उनकी चमक चमक उठती।
धूल दरपन पे कुछ ज़मी सी है।
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ढल गया सूर्य आज जल्दी से।
साँझ भी क्यूँ रुकी रुकी सी है।
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है हवा में यूँ फैलती सरगम।
ब्रज में बजती बांसुरी सी है।
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खुद को महसूस कर रही तन्हा।
मुझको उनकी लगी कमी सी है।
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सिर्फ आँखें ही कर रही बातें।
ये जुबाँ मुँह में बस थमी सी है।
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मामला प्यार का बढ़ा जबसे।
की हवा ने भी दिल्लगी सी है।
***
सुनीता असीम
14/3/2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
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