सुरेंद्र सैनी बवानीवाल

कुछ बुँदे..... 


उमस भरी धरती पर, 
कुछ बूंदों ने दस्तक दी. 
छोड़ कर हवा का दामन, 
माथे पर मस्तक दी. 
सदियों से सूखी धरा, 
उसने हल्के से दस्खत दी. 
भागती रही ये ज़िन्दगी, 
ना कभी फुर्सत थी. 
हैं सभी के अपने सलीके, 
क्यों किसी ने हस्तक दी. 
बूंदो से बदला मौसम, 
नए रंगों में बरकत दी. 
जो बदला वो अच्छा है "उड़ता ", 
पुरानी बातों से क्यों आहत की. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


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