सुरेंद्र सैनी बवानीवाल

होता क्यों है.... 


एक बात समझने की, 
आम जीवन ओखा क्यों है. 
संवेदना से जुड़े हम, 
फिर इश्क़ में धोखा क्यों है. 
कुछ कर गुजरने की तमन्ना, 
हालात ने रोका क्यों है. 
तक़दीर कहाँ मिटती है, 
कर्म का लेखा -जोखा क्यों है. 
दूर तलाक समुन्द्र -ए -नीर, 
सिर्फ साँस की नौका क्यों है. 
आत्मा के चित्र नहीं बनते, 
तन संग अक्स होता क्यों है. 
अश्रुओं से लिखी एक नज़्म "उड़ता ", 
तू बात पर पलकें भिगोता क्यों है. 



✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...