सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  झज्जर, (हरियाणा )

मुक्त कविता.... 



यूं ही.... कभी-कभी 


यूं ही कभी - कभी 
उनसे मुलाक़ात याद आती है 
उन्हें देखता हूँ जब भी 
उनकी कही 
हर बात याद आती है 


जलती हुई आग को देखकर 
कहीं कोई चिंगारी मुस्काती है
वह बीते लम्हों में, 
अपने नाज़ -ए -नखरों से, 
जाने बहके -बहके से 
कदम लड़खड़ाती है 


वह सौंदर्य सलोनी शामें 
और लज़्जत भरे दिन 
बड़े आराम से फरमाती है. 
खो गए कहाँ 
वो तिलिस्म ज़िन्दगी के "उड़ता "
नसों में सोयी जज़्बाती 
याद आती है. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर ( हरियाणा )


udtasonu2003@gmail.com


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...