भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.

*"पुस्तक"*(वर्गीकृत दोहे भाग2)
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*पुस्तक युग-अभिलेख है, धर्म-सृजक पहचान।
साधक की है साधना, मंगल वाणी जान।।11।।
(14गुरु,20लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)


*पुस्तक नींव चरित्र की, महत मान सम्मान।
सींचे जीवन-मूल्य को, सरसित सुधा समान।।12।।
(14गुरु, 20लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)


*गुरुओं की गुरु पुस्तकें, देतीं सबको सीख।
इनमें मुखरित है हँसी, कभी किसी की चीख।।13।।
(15गुरु,18लघु वर्ण, नर दोहा)


*पुस्तक प्रकाश-पुंज है, परिमल पावन ग्रंथ।
होता जिसके भान से, परम प्रभासित पंथ।।14।।
(13गुरु,22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*लहके खेत किताब में, सुरभित बहे बयार।
इसमें पर्वत-श्रृंग है, नदिया की भी धार।।15।।
(14गुरु,20लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)


*पुस्तक में आनंद है, उपवन का सा भान।
गुन-गुन करते भृंग हैं, द्विजगण गाते गान।।16।।
(14गुरु,20लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)


*भेद छिपे विज्ञान के, दर्शन अरु इतिहास।
परिपूरित तकनीक से, पुस्तक प्राग-प्रभास।।17।।
(13गुरु,22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*उत्तम प्रबंध आज का, पुस्तक से है जान।
भावी कल की योजना, विकसित पल आह्वान।।18।।
(15गुरु,18लघु वर्ण, नर दोहा)


*मोती-मूँगों से भरा, सागर सरिस किताब।
जितने चाहे घट भरो, अमल अपरिमित आब।।19।।
(13गुरु,22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*होकर नेत्र विहीन भी, नैन-लगे अभिराम।
पुस्तक प्रीत-प्रकाशिनी, "नायक" नव-गुणधाम।।20।।
(13गुरु,22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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