डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"त्याग -योग"


त्याग और योग
वियोग और संयोग
वियोग में संयोग
संयोग में वियोग
योग का संयोग
योग का वियोग
वियोग में योग
योग में वियोग
बात अटपटी है
समझ में आ जाये तो चटपटी है
यह ऐसे ही है जैसे-
जीवन में मरण
और मरण में जीवन
उत्थान में पतन
और पतन में उन्नयन
सयन में जागरण
और जागरण में सयन
दिन में रात
और रात में बारात
ज्ञान में अज्ञान
और अज्ञान में ज्ञान
बात पुनः अटपटी
लेकिन फिर भी चटपटी
पठन में तन्द्रा
तन्द्रा में निद्रा
निद्रा में स्वप्निल पठन
कल्पना लोक का गठन
दुःख और आनन्द
वीरगति और परमानन्द
सबकुछ सम्मिश्रण है
अशरण और शरण है
कष्ट में आराम है
पीड़ा में विश्राम है
मौज मेँ भी कष्ट है
पीड़ा स्पष्ट है
सुख दुःख अलग नहीं हैं
हाँ और नहीं विलग नहीं हैं
वैज्ञानिक धरातल हो
दार्शनिक वायुतल हो
धरा से उड़ रहे हैं
अनन्त में बूड़ रहे हैं
माया से परे
मोह से उबरे
आत्ममंगल पथ पर
लोक रथ पर
सारथी के संग
आध्यात्मिक रंग
आत्मविजय की कामना
सबके प्रति शुभ कामना
सादर नमन
सबका अभिनन्दन।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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