जयश्री श्रीवास्तव जया मोहन  प्रयागराज

एक कहानी बुंदेली 
करिया
रात भर चांदनी के साथ अठखेलियां कर चंदा सूरज के उगने की आहट सुन शर्मा कर जा रहा था ।सूर्यदेव अपने रश्मि रथ पर सवार हो जग को प्रकाशित करने आ रहे थे।उनकी किरणों के धरती चूमते ही निद्रा मग्न धरती में हलचल शुरू हो गयी।रैन बसेरे से पक्षी निकल कर मधुर ध्वनि करने लगे।ऐसा लगा मानो वो अपने देवता को ऊष्मा व प्रकाश देने के लिए धन्यवाद  दे रहे हो।बैलो के गले मे पड़ी घंटियां रुनझुन बजने लगी।मानव भी आलस त्याग नित्य क्रिया से फारिग होने के बाद अपने कामो में लग गया। रसोईघर से खाने की खुशबू फ़िज़ा में तिर गई।कोई अखबार के साथ चाय की चुस्की लेने लगा कोई हल  लेकर खेत चला बच्चे स्कूल जाने को तैयार।
धीरे धीरे सूरज देवता अपनी पूर्ण आभा से पृथ्वी को प्रकाशित करने लगे। बस नही उठी थी तो करिया।अरे चौकिये मत मैं आपको एक  बुन्देलखण्ड की बेटी की कहानी वही की भाषा मे सुनाने जा रही हूं।करिया हाँ यही शीर्षक है मेरी कहानी का ।चलिए अब वही की भाषा मे कही जाय क्या कहा समझ नही आएगी।लो भैया  तो फिर हम किस बात की दवा है। हर शब्द का अर्थ हम कोष्ठ में लिखेगे।अब ना मत करियेगा।एक ही तरह का भोजन मन को आह्लादित नही करता वैसे थोड़ा सा भाषा का स्वाद भी बदल कर देखिए।
बात बहुत दिनन की है।वरा नाम को एक गांव हतो(  था) उते(वहाँ,)के ठाकुर साहब बड़े खेतिहर हते।जानत हो भैया की उते की जमीन इते(यहाँ) जैसी नाइ होत। सौ बीघा वारो धरणीधर भी गरीब रहत है। काय की उते पानी को साधन नाही भुइ (धरती,,) पथरीली होत है।बस अगर भगवान जी की किरपा भई समय से बरस गाओ तो गल्ला(आनाज़) घरे आ गों नही तो तकत रहो ।
हो सो मैं कहत ती उनके एक ठो मौड़ी*(लड़की)हती।उको नाम हतो कली पर उको रंग कारो हतो ऐसे सबरे(सब)उखा करिया करिया कहत ।उखी दादी तो भौतै गरियात हती।ओ मोरे ईसुर काहे के लाने जो उलटो तवा मोरे घर भेज दाओ।एक तो मौड़ी ऊ पे करिया।कौनौ उखो प्यार न करत।बेचारी भौताई दुखी रहत।महतारी करिया का करेजे से लगाय रहत।करिया रोवत तो कहत चमक जा(चुप हो जा) बिन्नू(बेटी) तोखा ,तुझे, कोनऊ चाहे न चाहे मैं तो चाहत हूं तोय।करिया अपनी बाई(माँ) के पीछू पीछू लगी रहत।उखा तनको देर उठे में हो जाय तो दादी चिचियात भुनसारो कबइ का हो गाओ जा महारानी की निदई न टूटत।घाम चढ़ आओ।करिया दिरात दिरात उठत दादी मोय जुड़ी(बुखार) सी चढ़ी है।एई लाने न उथ पाये।हौ हौ(हा हाँ) जा कुइयां पे जा के सपर ले((नहा) हुन्न आ,लत्ता(कपड़ा)) फीच(धो) लाइये और इत्ते सुन बाबा की पर्दनिया( धोती) फीच लाइये।हौ दादी।सारे घरहि को काम करिया करत।कछु दिनन से बाई की तबियत खराब हती।सारो घर सम्भलवे वारी करिया कौनौ कहत करिया गड़ई ( लोटा) में पानी दे जा दादी कहत खोरा( कटोरा) में दूध धर दे जा से ठंडो हो जाय ।छुटकी कहत जिज्जी मोरे बाल उँछ दे( कंघी कर दे) मोखा अबेर होत है स्कूल जाय खा। सबरन के काम मे करिया दौड़त रहत  खोबई घाम चढ़ आत तबे खा पात करिया। रात में पलका( पलँग) पे गिरत तो होशीइ न रहत की कब भुनसारो हो गाओ।
करिया जब पूजा करत तो कहत ओ भगवान हमहि का काहे का एसो रंग दे दाओ।बाई कहत बिन्नू राम जी जौन करत है भले के लाने करत है। अम्मा के साथ काम करत करत सबइ काम मे करिया होशियार हो गई। अम्मा का दादी सुनात न जाने का खा के जनि जा मौड़ी। शादी के लाने मोर बिटवा के लोहे की लतकरिया( जूते) घिस जाहे। करिया बुंदेली सबरे गीत गा लेत जो कोउ सुनत कहत ठाकुर की मौड़ी गात है इत्तो मीठो को कानन में रस सो घुरो जात है।सिलाई बुनाई कड़ाई ऐसी करत की देखन वरन की आँखे फटी रह जाती।अचार बड़ी पापड़ एसो बना त की लोग अंगुरिया चाट ले। 
सारे गांव की बिन्नू गुट्टी( बेटी बहु)उसे सीखती सबइ कहत हीरा है हीरा।करिया की पक्की गुइयां की बारात आयी करिया नही गई वो अड गई मोरी गुइयां न आहे तो हम ब्याब न कराहे। अरे बुला लाओ करिया खा।करिया के पहुँचत मौड़ी चिपट गई काय एसई निभाई जात है दोस्ती।करिया हर रीत पे खूब गीत गाये बाराती पूछन लगे को आ गा रहो इत्तो मीठो तभी एक मौडा( लड़का) ने एक बिटिया को अपने एंगर( पास) बुलाओ।काय बिन्नू ये जो को गया रहो।जे तो हमारी करिया जिज्जी है हमे मिलवा दो धत कह वह मौड़ी भाग गई।कमरे में घुसत भई बोली उते बरातिन्ह में एक मौडा करिया जिज्जी से मिरवाबे को कहत है।तभी एक जनि बोली देख तो नौनिया को आय।
नौनिया मौड़ी संग गई का भाई का कहत रहे मौड़ी से।अरे जौन गात रही उन्ही से मिकने है।काय ब्याब करने है।नही कुछु जनि बोली मिला दो उनने दूरहि से दिखा दी वो देखो वो रही बस रंग से कम है सबरे कामम में बहुतै होशियार है। ।अम्मा रंग को का गुण तो है।
कछु दिनन बाद करिया के इते एक लिफाफों आओ।की की चिठ्ठी हूहे हमे का  पतो। दादी बोली अरे खोल कर देखो कोनऊ जुजु बाबा नही हैकि काट खाहे।हौ बाई पढ़त है। जे तो करिया के ब्याब के लाने आई है। का।का मोरे कान सही सुन रहे है।हौ हौ । दद्दा भी आ गए का हो रहो है।जो पत्र आओ है कौन इंजीनियर को।का कहत हो रामधाई( राम कसम) जे तो गज़ब हो गाओ।दादी बोलू कोनऊ ने मज़ाक करो हुईहै ।अंदर आती करिया की गुइयां बोली नही है सच्ची है।। जे मेरे दूर के देवर है सबइ जने खुश हो गए।दादी बोली बड़भागिनी है मोर करिया।अरे पतो कर लो कोनऊ खोट न हो मौडा में।नही बाबा हम जिम्मेकारी लेट है।
धूम धाम से करिया का ब्याब हो गाओ।बहुत कम आ पाती करिया।।
करिया बड़े बड़े कार्यक्रम में गाने लगी विदेश हो आयी फिल्मों में भी गाने लगी।पूरा गांव गर्व करता।करिया के गोरा चिट्टा बेटा है।दादी बाबा गोलोकवासी हो गए।
आज करिया की फैक्ट्री का उदघाटन है। अम्मा आंचल फैला कर कहती सूरज देवता तोरे आते ही अंधेरे छंट जाते है वैसे भाग्य पलटते ही दिन बहुर जाते है सही रात के बाद भोर हॉट है।मोरी करिया को भी भिनसार हो गाओ।कबहु उखो दुख न दाइयों भौताई दुख सहे है ऊने। अब सब उसका सही नाम बुलाते है कली सुन कर अम्मा कहती अब मोर जियरा जुड़ाने सब नाम तो सही बोलत है
अरे का सोचन लागी अबेरा हो गई तो गाड़ी छूट जाहे।नहीं नही चलो हमार करिया न कली सिंह हमरी राह जोहत हुईहै।कली ने फैक्ट्री का फीता अम्मा से कटवाया।आज चारो तरफ कली की सुगन्ध फैल रही है।


स्वरचित
जयश्री श्रीवास्तव
जया मोहन 
प्रयागराज


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