सुनीता असीम

गीतिका


मिट गए हमको जमाने से मिटाने वाले।
आज कदमों में झुके हमको झुकाने वाले।
***
इंतिहाई है मुहब्बत यूं खूदा से हमको।
नाखुदा लगते रहे हमको जमाने वाले।
***
बेवफा दोस्त मुहब्बत हो गए हैं अब तो।
लोग मिलते ही नहीं साथ निभाने वाले।
***
दूर से देखके जिसने था सिकोड़ा मुंह को।
मिल रहे हैं आज वही नाम भुलाने वाले।
***
दूर जाकर जो कभी आए नहीं वापस भी।
खो  गए  जाने  कहां पास    बुलाने वाले।  
***
सुनीता असीम
२७/४/२०२०


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...