एक कविता... "पुनर्मिलन"
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कुछ असर नहीं करती
ज्येष्ठ की दुपहरी
तर नहीं करती...
पूस की शीतलता
क्षण-प्रतिक्षण
स्मृति में वो....और उनकी छाया
उनका प्रिय सम्भाषण
खिल-खिलाकर हँसना।...
कौन जानेगा?
गुप-चुप नयनों की भाषा
घुटी-घुटी सी
संचित अभिलाषा .....
तनहा मन...
अपनी आकुलता...
अपनी अनुरक्तता
व्यक्त नहीं करता
किन्तु
हाय रे.. भावनाओं का प्रवाह
थकता ही नहीं।
फिर भी....
संयम नहीं टूटता
चेतना बेसुध नहीं होती
व्याकुल नहीं होती साँसें....
नेत्र यात्रा नहीं करते
धड़कनें आतुर नहीं होतीं....
जीने का साहस नहीं छूटता..
क्योंकि....
निश्चित है उनका पुनर्आगमन
पुनर्मिलन।......
मौलिक रचना -
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश'
(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०) मो० नं० 9919886297
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